क्या फ़र्ज़ी अस्पताल और फ़र्ज़ी लैब संचालकों का साथी बना हुआ है स्वास्थ्य विभाग, क्यों नहीं होती कोई ठोस कार्यवाही
यामीन विकट
Thakurdwara News : अवैध अस्पतालों और अवैध लैबो के खिलाफ मजबूत कार्यवाही कब होगी आखिर कब तक ये अस्पताल और लैब सील होकर खुलते रहेंगे और क्यों होते हैं सील तथा बाद में क्यों मिल जाती है इनको हरी झंडी। ये बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब शायद कभी नही मिल पाएंगे।
जी हाँ नगर व क्षेत्र भर में अवैध रूप से खुले अस्पताल रोज़ाना लोगो की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं इन अस्पतालों में अक्सर सभी तरह के मरीज़ों को भर्ती कर लिया जाता है और बाद में जब मरीज़ की हालत इन फ़र्ज़ी चिकित्सकों के कब्जे से बाहर हो जाती है तो या तो आनन फानन ऐसे मरीज़ को हायर सेंटर रैफर कर दिया जाता है या वो इस दुनिया से दूसरी दुनिया में रैफर हो जाता है और तब थोड़ा बहुत पैसा देकर तथा मौत का वक्त मुक़र्रर होने की बात कहकर अगले दिन से अस्पताल फिर से अपने ढर्रे पर लौट आते हैं ।
कभी कभार जब इन अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा कार्यवाही के नाम पर लीपापोती की जाती है तो इन अस्पतालों पर नोटिस चस्पा कर इन अस्पताल संचालकों को जिलामुख्यालय बुला लिया जाता है और वँहा से दो चार दिन में ही इन्हें क्लीनचिट दे दी जाती है।यही हाल नगर में चलाई जा रही दर्जनों पैथोलॉजी लैबो का भी है इनपर भी दो चार दिन के लिए सील लगा कर ये समझा दिया जाता है कि स्वास्थ्य विभाग इन पर सख्त कार्यवाही कर रहा है लेकिन बाद में इन्हें भी पहले की भांति खुलवा दिया जाता है।
यंहा सवाल यह है कि जब ये सब वैध ही हैं तो फिर इस छापेमारी का क्या मतलब है और यदि यह सब फ़र्ज़ी हैं तो इनको कैसे दोबारा खोला जाता है। स्वास्थ्य विभाग में चल रहे इस खेल से वैसे तो सभी वाकिफ हैं लेकिन जिस तरह आएदिन कुकुरमुत्ते की तरह नगर व क्षेत्र में इन फ़र्ज़ी अस्पताल और फ़र्ज़ी लैबो की बाढ़ आ रही है
उसमें आम आदमी का स्वास्थ्य पूरी तरह से दांव पर लगा दिया गया है। कमाल इस बात का भी है कि ये फ़र्ज़ी अस्पताल कंही आड़ में नही चलाये जा रहे हैं बल्कि पूरी दबंगई के साथ नगर के मुख्य मार्गो पर चलाये जा रहे हैं और इससे भी बड़ी बात ये है कि इन अस्पताल में बैठे चिकित्सको को इंजेक्शन तक नही लगाना आता है। ताज़ा मामला नगर के वार्ड नं 21 का है जंहा एक महिला को हाथ में दर्द होने की शिकायत पर काशीपुर रोड स्थित एक निजी अस्पताल ले जाया गया जंहा मौजूद चिकित्सक ने महिला को दर्द निवारक इंजेक्शन लगाया जिसके लगते ही उसकी हालत खराब हो गई और वह मछली की तरह तड़पने लगी। महिला के परिजनों ने अस्पताल पंहुचकर खूब खरी खोटी भी सुनाई लेकिन चिकित्सक पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
ऐसे ही कई मामले इन फ़र्ज़ी लैबो में प्रतिदिन नज़र आते हैं इन लैबो से जो रिपोर्ट मरीज़ों को दी जाती है उसे लैबो पर बैठे फ़र्ज़ी और नोसिखियों द्वारा तैयार किया जाता है और 80 प्रतिशत ये रिपोर्ट गलत होती हैं यही कारण है कि जब कोई मरीज़ इन्ही रिपोर्ट को काशीपुर या अन्य किसी स्थान पर लेकर जाता है
तो वँहा के चिकित्सकों द्वारा इन रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है और मजबूर होकर मरीज़ की जांच दोबारा कराई जाती है। बरसों से चल रहे इस खेल को आज भी बखूबी चलाया जा रहा है और स्वास्थ्य विभाग भी इस खेल को आंख मूंदकर देख रहा है न सिर्फ देख रहा है बल्कि इस खेल में इन फ़र्ज़ियो का बराबर का साथी बना हुआ है।