यामीन विकट
ठाकुरद्वारा : नगर निकाय चुनाव के लगभग साढ़े तीन महीने बीत जाने के बाद भी नगर का विकास कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है। पालिकाध्यक्ष और सभासदों के बीच आपसी तालमेल न हो पाने के कारण नवनिर्वाचित बोर्ड की दोनो बैठक हंगामे की भेंट चढ़ गई हैं। क्या इस असंतुलन के चलते अधर में ही लटका रहेगा नगर का विकास,
नगर पालिका परिषद के चुनाव को हुए लगभग साढ़े तीन महीने का समय बीत चुका है। नवनिर्वाचित पालिकाबोर्ड की अबतक दो बैठक हो चुकी हैं लेकिन दोनों ही बैठकों में कोई नतीजा निकलकर सामने नही आया और दोनो ही बैठकों में पालिकाअध्यक्ष व सभासदों के बीच रस्साकशी होती नजर आयी।
बोर्ड की बैठक में लाये गए प्रस्तावों पर सभासदों को भरोसा नहीं है वह इन प्रस्तावों को शक की नजर से देखते हैं और उनका विरोध करते हुए हंगामा करते हैं। उधर नगर पालिका अध्यक्ष अभी तक सभासदों का विश्वास जुटाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं क्योंकि अभी तक पालिकाध्यक्ष वो बहुमत नहीं हासिल कर पाए हैं जो किसी प्रस्ताव को पास कराने के लिए उन्हें चाहिए। आखिर क्यों ?
अब अगर यंहा इन तीन महीनों के पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल की बात करें तो इसमें उनके द्वारा भूमि की जांच पड़ताल करना, राशन डीलरों को पूरा राशन न देने के नाम पर हड़काना, विवादित भूमि पर नगर पालिका की जे सी बी व नगर पालिका कर्मियों को भेजकर उसमें चूना आदि डलवाना, अपने खास व्यक्ति को नगर पालिका के पेड़ दिलवाना,हाउस टैक्स के नाम पर पालिका में अवैध वसूली का बढ़ जाना, सभासदों की अनदेखी करना, आदि शामिल हैं। कुल मिलाकर अभी तक विकास के नाम पर नगर में ज़ीरो बटा सन्नाटा ही नजर आता है। नवनिर्वाचित पालिका बोर्ड का साढ़े तीन महीने का ये समय यूँ तो कोई ज़्यादा नही है और हो सकता है कि आगे नगर का कुछ विकास भी हो लेकिन जो हालात वर्तमान में हैं वह बेहद निराश करने वाले हैं क्योंकि नगर पालिका अध्यक्ष और सभासदों के बीच तू डाल डाल तो मैं पात पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है और अगर ये इसी तरह आगे भी जारी रही तो नगर का विकास सिर्फ सोएगा ही नही बल्कि नगर का विकास हमेशा के लिए सोकर अमर हो जाएगा।