शायर अख़्तर शाहजहांपुरी के आवास पर शेरी नशिस्त का आयोजन
फै़याज़ सागरी
शाहजहाँपुर : रविवार को मोहल्ला रंगीन चौपाल स्थित मशहूर शायर अख़्तर शाहजहांपुरी के आवास पर विशिष्ट शेरी नशिस्त एवं साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें स्थानीय शायरों ने अपनी गजलों से सभी को मंत्रमुग्ध किया।
नशिस्त की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शायर खालिद अल्वी ने सुनाया :
मैं जिए जाऊंगा तपते हुए सहरा की तरह।
तुम फरामोश न करना मुझे दुनिया की तरह।।
शायर अख़्तर शाहजहांपुरी ने कहा :
समझ रहे हो कि बुझता हुआ दीया हूं मैं।
यकीं करो कि उजाला का सिलसिला हूं मैं ।।
अज़ीम शाहजहांपुरी ने कहा :
फिर उसके बाद जलने लगा था तमाम शहर।
साज़िश जो की चराग ने मिल कर हवा के साथ।।
असगर यासिर ने कहा :
समुन्दर की जानिब बढ़ी जा रही है।
वुजूद अपना खोने नदी जा रही है।।
हमीद खिजर ने गुनगुनाया :
वह जो बैसाखियों पे चलता है।
आना चाहता है अब मेरे कद तक।।
शाहिद रज़ा ने सुनाया :
साथ रखते हैं बड़े शौक़ से जाने क्या क्या।
नींद आती है तो सब छोड़ के सो जाते हैं।।
राशिद हुसैन राही ने कुछ यूं कहा :
यकीनन मंजिलें इक दिन मेरे कदमों को चूमेंगी।
कि आंखों में मेरी मां की दुआओं के उजाले हैं।।
शायरा गुलिस्तां खान ने सुनाया :
इंसाफ की जुबां को सियासत के खौफ ने।
क्या कीजिए मलाल जो गूंगा बना दिया।।
असलम तारिक ने गुनगुनाया :
तस्वीर क्या बनाई मुसव्विर ने दोस्तो!
जैसे कि रख दिया है कलेजा निकाल के।।
शारिक अक्स ने यूं सुनाया :
दौरे जदीद पर भी हो शेरों में तब्सिरा।
फिक्रे सुखन में लाइए अब कुछ निखार भी।।
शमशाद आतिफ ने अपनी ग़ज़ल में सुनाया :
रेशमी कलियों से उसके रूप का सृजन किया।
हमने इस शालीनता से प्रेम का अध्ययन किया।।
फ़हीम बिस्मिल ने कहा :
तखरीब से तकरीब के पहलू निकले।
तदबीर से तामीर के जुगनू निकले।।
इशरत सगीर ने सुनाया :
एहसान पे एहसान किए जाएंगे।
सब मरहले आसान किए जाएंगे।।
महफ़िल में खालिद अल्वी ने कहा कि ऐसी साहित्यिक एवं काव्य गोष्ठियों की आज बहुत जरूरत है। युवा पीढ़ी को लेखन, कला एवं साहित्य से जोड़ना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है। विशिष्ट अतिथि सुधाकर तिवारी एडवोकेट ने राष्ट्रीय एकता के लिए ऐसी गोष्ठियों के नियमित आयोजन पर ज़ोर दिया।संचालन इशरत सगीर ने किया। अंत में मेजबान अख़्तर शाहजहांपुरी ने सभी का आभार व्यक्त किया।