रामनगर वन प्रभाग में साल बोरर कीट का कहर: साल के जंगलों पर संकट के बादल
सलीम अहमद साहिल
रामनगर : उत्तराखंड के रामनगर वन प्रभाग के कोटा रेंज में इन दिनों जंगलों में साल बोरर कीट का गंभीर प्रकोप देखने को मिल रहा है। यह खतरनाक कीट साल के पेड़ों के तनों में छोटे-छोटे छेद करके उन्हें कमजोर कर रहा है, जिससे जंगलों का संतुलन बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है। वन विभाग और विशेषज्ञों ने इसे रोकने के लिए विशेष कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
क्या है साल बोरर कीट?
साल बोरर (वैज्ञानिक नाम: Hoplocerambyx spinicornis) एक प्रकार का कीट है, जो साल के पेड़ों के तनों में छेद करके भीतर घुस जाता है। यह पेड़ों के पोषण तंत्र को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और वे धीरे-धीरे सूखने लगते हैं। यह समस्या न केवल जंगलों के लिए बल्कि वहां रहने वाले वन्यजीवों के लिए भी बड़ा संकट बन सकती है।
कोटा रेंज पर सबसे ज्यादा असर
रामनगर वन प्रभाग के कोटा रेंज में इस कीट का असर सबसे अधिक महसूस किया जा रहा है। यहां साल के पेड़ों का तेजी से क्षरण हो रहा है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह पूरे वन क्षेत्र के लिए विनाशकारी हो सकता है।
एफआरआई की टीम करेगी समाधान
रामनगर के वन अधिकारियों ने इस समस्या को लेकर वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून को सूचित किया है। एफआरआई की एक विशेषज्ञ टीम जल्द ही प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेगी। उनके द्वारा प्रभावित पेड़ों के उपचार और रोकथाम के उपाय शुरू किए जाएंगे। इस संबंध में रामनगर के डीएफओ दिगंथ नायक ने कहा, “हम इस समस्या को लेकर पूरी तरह सतर्क हैं। वन और जैव विविधता को बचाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे।”
इतिहास में भी बरपा चुका है कहर
साल बोरर का यह प्रकोप कोई नई घटना नहीं है। 1960-70 के दशक में भी यह कीट कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के जंगलों में भारी नुकसान पहुंचा चुका है। उस समय हजारों साल के पेड़ सूख गए थे। अब एक बार फिर हल्द्वानी और रामनगर के जंगल इस संकट से जूझ रहे हैं।
वन्यजीवों पर भी असर
रामनगर और आसपास के जंगल केवल पेड़ों के लिए ही नहीं, बल्कि बाघों, हाथियों और अन्य वन्यजीवों के लिए भी घर हैं। साल के पेड़ जंगलों की जैव विविधता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में यदि पेड़ों का नुकसान होता है, तो इसका सीधा असर वन्यजीवों पर भी पड़ेगा।
संकट से निपटने की तैयारी
वन विभाग और प्रकृति प्रेमियों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों को इस संकट से बचाने के लिए वैज्ञानिक और जैविक उपायों का सहारा लिया जाएगा। एफआरआई के वैज्ञानिक जल्द ही रोकथाम के लिए एक रणनीति तैयार करेंगे।
एकजुटता से बनेगी बात
यह संकट एक नई चुनौती के रूप में सामने आया है। उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए हर स्तर पर एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। यदि समय रहते सही कदम उठाए गए, तो जंगलों की हरियाली और जैव विविधता को फिर से बहाल किया जा सकता है।
– रिपोर्ट: [सलीम अहमद साहिल ], रामनगर