कोतवाली में दलालों का बोलबाला,
यामीन विकट
ठाकुरद्वारा : पिछले लंबे अरसे से कोतवाली में दलालों की भारी संख्या में आवाजाही बनी हुई है, सुबह से लेकर देर रात तक ये दलाल अपने अपने कामो को लेकर आते हैं और अपना उल्लू सीधा कर चले जाते हैं।
बताते चलें कि अलग अलग कामो के लिए कुछ अलग अलग लोग कोतवाली में डेरा डाले रहते हैं जिनका रोज़ का यही काम है। जाहिर सी बात है कि किसी की भी दलाली तब तक नही चलती है जब तक उसे दलाली की जगह काम करने वालो का सहारा न हो क्योंकि अगर उसे सहारा नही मिलेगा तो उसका काम नही होगा और काम नही होगा तो पैसा नहीं मिलेगा। अब अगर कोतवाली पुलिस की बात करें तो कोतवाली पुलिस को कोतवाली में समाचार संकलन के लिए आने वाले पत्रकार जहर लगते हैं और उनसे कहा जाता है कि उनके कोतवाली आने से गोपनीयता भंग होती है जबकि यही गोपनीयता बराबर में दलालो को बैठाकर भी भंग नही होती है। नगर में चल रहे तमाम अवैध कामो की बात करें तो इनमें अवैध खनन, स्मेक की बिक्री , जुआ, सट्टा, सब धड़ल्ले से चल रहा है शाम को ही अवैध खनन करने वाले कोतवाली के आसपास टहलते हुए नजर आ जाते हैं।
और फिर यंहा से सेटिंग होने और हरी झंडी मिलने के बाद रात रात भर खनन का काम किया जाता है। इस मामले की शिकायत यदा कदा जब किसी के द्वारा की जाती है तो कोतवाली पुलिस कहती है कि ये मामला उनके कार्यक्षेत्र में नही आता है और इसकी शिकायत खनन इंस्पेक्टर से करो। यही हाल नगर में नशे का भी है जंहा लगभग हर मोहल्ले में आपको नशेड़ी मिल जाएंगे और ये इस नशे के सामान को कंही विदेश से नही बल्कि नगर से खरीद रहे हैं बस इन सब बातों से अगर कोई बेफिक्र है तो वह बेचारी कोतवाली पुलिस है जिसे ये ही नही पता कि नशे के ये सामान कंहा बिक रहे हैं। अगर कभी कोई शिकायत होती भी है तो कोतवाली पुलिस अंजान बनकर कहती है कि हमे बताओ कंहा बिकता है और शिकायत करने वाला ये सोचकर चुप हो जाता है कि अगर वो किसी की शिकायत करेगा तो उससे ही दुश्मनी निकाली जाएगी। कमोवेश यही हालत नगर में जुए और सट्टे की है और ये भी धड़ल्ले से चल रहा है। जब कभी भी इन सटोरियों या जुआरियों को पकड़ा जाता है तो कुछ दलाल कोतवाली पँहुच जाते हैं और या तो मामले को रफा दफा कर दिया जाता है या फि जुए की मामूली धारा में मामला दर्ज कर अक्सर कोतवाली से ही जमानत पर छोड़ दिया जाता है ताकि बेचारे जुआरियों या सटोरियों को कोई ज्यादा परेशानी न हो। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि जो भी कोतवाली पुलिस के कारनामों को उजागर करने की कोशिश करता है तो कोतवाली पुलिस की आँखों में वही तिनके की तरह किरकता रहता है और फिर कोतवाली पुलिस तुगलकी फरमान सुना देती है कि पत्रकारों पर पाबंदी लगाई जाती है क्योंकि गोपनीयता भंग होने का खतरा है।