डीएफओ साहब, आपका तंत्र फेल या वन विभाग में चल रहा है कोई बड़ा खेल?
सलीम अहमद साहिल
उत्तर प्रदेश में भले ही योगी के बुलडोज़र से माफिया थर-थर कांपते हों, लेकिन कुछ ऐसे वन गुर्जर भी हैं, जिन्हें न तो बुलडोज़र का डर है और न ही किसी कानून का खौफ। बात हो रही है जिला बिजनौर की, जहां वन विभाग की बिजनौर डिवीजन की अमानगढ़ रेंज के माकोनिया बीट में इन दिनों वन गुर्जरों का साम्राज्य खुलकर फल-फूल रहा है।
इन लोगों को न तो वन विभाग का डर है, न ही योगी सरकार के बुलडोज़र का कोई खौफ। सवाल उठता है – इन वन गुर्जरों के पीछे आखिर कौन सी ऐसी ‘सुपर पावर’ है जिसके आगे पूरा तंत्र पानी-पानी नजर आ रहा है?
सूत्र बताते हैं कि यहां जंगल में अवैध कब्जा करने वाले कुछ ऐसे वन गुर्जर भी हैं जिनके पास हेक्टेयरों में रजिस्ट्री की जमीन है, आलीशान पक्के मकान हैं, लेकिन इसके बावजूद ये लोग जंगल में अवैध रूप से कब्जा करके रह रहे हैं। सैकड़ों की संख्या में इनके पास गाय-भैंसे हैं, जिनसे हर रोज हजारों लीटर दूध का उत्पादन होता है और लाखों रुपये की आमदनी होती है।
लेकिन जब सरकार को ‘मुँह चूगान’ के रूप में राजस्व देने की बात आती है, तो ये लोग महज 20 प्रतिशत पशुओं का ही हिसाब देते हैं। इससे सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है। साथ ही, इन पशुओं की वजह से जंगल के पेड़-पौधों को भी भारी नुकसान हो रहा है, जिससे पर्यावरण पर संकट मंडरा रहा है।
इतना ही नहीं, इन गुर्जरों के छप्परों में करोड़ों रुपये की कीमती जंगल की लकड़ी इस्तेमाल की गई है, जिसके लिए सैकड़ों हरे और सूखे पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया है। जंगल की ज़मीन का स्वरूप भी बदला जा रहा है। अगर वन विभाग ईमानदारी से इनसे जंगल की लकड़ी का जुर्माना वसूले, तो सरकार को लाखों रुपये का राजस्व मिल सकता है।
पर सवाल ये है कि जो विभाग जंगल की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, वही या तो गहरी नींद में सोया है या फिर मिलीभगत में शामिल है? ये जांच का विषय है। लेकिन जिस विभाग को योगी सरकार मोटा वेतन देती है ताकि वो जंगलों की रक्षा करे, वही विभाग निष्क्रिय नजर आ रहा है।
क्या वाकई इन वन गुर्जरों के पीछे कोई ऐसी ताकत है, जिसके आगे वन विभाग के अधिकारी कांप जाते हैं और कार्रवाई से पीछे हट जाते हैं?
मामला सिर्फ वन विभाग तक सीमित नहीं है। यहां योगी सरकार का बुलडोज़र भी मौन है। उत्तर प्रदेश का वही बुलडोज़र, जो अवैध अतिक्रमण पर दहाड़ता है, यहां खामोश क्यों है?
इस सवाल के जवाब कई हो सकते हैं। लेकिन फिलहाल सबसे प्रासंगिक जवाब यही है कि या तो स्थानीय वन विभाग इन वन गुर्जरों के कारनामों की सूचना उच्च अधिकारियों और सरकार तक पहुंचाने में नाकाम रहा है, या फिर वन विभाग की ही मिलीभगत से यह सब चल रहा है।
वन गुर्जर समाज वैसे तो पारंपरिक वनवासी रहा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पशुपालन कर दूध उत्पादन करता रहा है। लेकिन कुछ वन गुर्जरों के कारनामों की वजह से पूरे समाज की साख पर खतरा मंडरा रहा है। इसके जिम्मेदार वे चंद लोग हैं जो कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
The Great News लगातार जंगलों को बचाने की मुहिम चला रहा है, और ऐसे मामलों को सामने लाकर वन विभाग और सरकार को जगाने का प्रयास करता रहेगा। आने वाले एडिशन में हम आपको बताएंगे कि कितने वन गुर्जर रजिस्ट्री की ज़मीन होने के बावजूद जंगल में अवैध कब्जा जमाए बैठे हैं, और अब तक वन विभाग व योगी सरकार की नजरों से कैसे बचे हुए हैं।