फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में नियमों की नहीं, रसूख की चलती है सालों बीत गए लेकिन दर्शन सिंह की कुर्सी नहीं हिली!
अज़हर मलिक / सलीम अहमद साहिल
उत्तराखंड वन विभाग का यह हाल है कि ट्रांसफर के आदेश तो जारी हो जाते हैं, लेकिन कुर्सियां छोड़ने की नौबत ही नहीं आती। दर्शन सिंह अधिकारी इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिनका ट्रांसफर हुए एक अरसा बीत चुका है, लेकिन वो आज भी उसी पद पर जमे हुए हैं जहां उन्हें वर्षों पहले तैनात किया गया था।
तराई पश्चिमी डिविजन ( प्रभागीय वनाधिकारी ) कार्यालय पर तैनात प्रशासनिक अधिकारी दर्शन सिंह अधिकारी यह अधिकारी लगातार एक ही स्थान पर डटे हैं, मानो ट्रांसफर उनके लिए कोई मायने ही न रखता हो। सवाल उठता है – आखिर उनकी कुर्सी इतनी मजबूत क्यों है कि शासन-प्रशासन की भी कलम उन्हें क्यों हिला नहीं पा रही?
स्थानीय सूत्रों की मानें तो दर्शन सिंह अधिकारी ने उस क्षेत्र में भ्रष्टाचार का ऐसा बगीचा खड़ा कर दिया है, जिसकी जड़ें अब बहुत गहरी हो चुकी हैं। सफारी के नाम पर गाड़ियों की अवैध एंट्री, जंगल के नियमों की खुलेआम अनदेखी, और वन संसाधनों का शोषण — ये सब आम बात बन चुकी है।
लेकिन ये कहानी सिर्फ दर्शन सिंह तक सीमित नहीं है। वन विभाग में ऐसे “खिलाड़ी” कई हैं — जिन्हें पहले ट्रांसफर कर दिया जाता है, लेकिन बाद में तोड़-जोड़ और दबाव के दम पर ट्रांसफर रुकवा दिए जाते हैं। यह एक खुला खेल है, जिसमें नियमों की जगह रसूख और सेटिंग-गेटिंग का राज चलता है।
फिलहाल, उत्तराखंड का फॉरेस्ट डिपार्टमेंट हमेशा सुर्खियों में इसलिए नहीं रहता कि वहां पेड़ ज्यादा हैं बल्कि इसलिए कि वहां व्यवस्था की जड़ें खोखली होती जा रही हैं।
अब वक्त आ गया है कि शासन इस पर मौन न रहे। वरना आने वाले समय में जंगलों की हरियाली नहीं, भ्रष्टाचार की बेलें ही लहलहाएंगी।