“अलहम्दु शरीफ” की ताक़त — एक आयत, जो पूरे जहान को समर्पित है!
इस्लाम धर्म में जब भी किसी नई शुरुआत की जाती है, किसी काम पर बिस्मिल्लाह कहा जाता है, तो उसके तुरंत बाद अक्सर जो शब्द ज़ुबान पर आते हैं, वो हैं — “अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन”। इसी आयत को आमतौर पर लोग “अलहम्दु शरीफ” के नाम से भी जानते हैं।
यह आयत पवित्र कुरान की पहली सूरह “सूरतुल फातिहा” की शुरुआत है। और यही वजह है कि इसे कुरान का दिल भी कहा जाता है। हिंदी में इसका अर्थ है —
“सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जो सारे जहान का पालनहार है।”
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, “अलहम्दु शरीफ” सिर्फ प्रशंसा का एक जुमला नहीं, बल्कि एक ऐसी भावना है जो एक बंदे को अपने रब से जोड़ती है। यह आयत उस यकीन की मिसाल है जिसमें इंसान कहता है कि जो कुछ भी है — अच्छा, बुरा, मुश्किल या राहत — सब कुछ अल्लाह की तरफ से है, और उसी की हम्द (प्रशंसा) करनी चाहिए।
आज जब दुनिया तनाव, भागदौड़ और परेशानियों से घिरी है, तो “अलहम्दु शरीफ” जैसी आयत लोगों को सब्र और शुक्र की राह दिखाती है। यही वजह है कि नमाज़ हो या रोज़मर्रा की दुआएं, “अलहम्दु लिल्लाह” सबसे पहले और सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले जुमलों में शुमार है।
धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ यह आयत एक गहरा संदेश देती है — कि हर हाल में शुक्रगुज़ार रहो।
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