काशीपुर का बेटा!”थ्री-CCD कैमरा लेकर निकला था,न बिका, न झुका, ना डरा,खबरों का शेर,सच की खातिर जंग,19 साल बेमिसाल,
पत्रकारिता सिर्फ खबर लिखने या कैमरे में रिकॉर्ड करने का नाम नहीं, ये एक जिम्मेदारी होती है—सच की, समाज की, और उस विश्वास की जो लोग एक पत्रकार से रखते हैं।
काशीपुर जैसे छोटे शहर से निकलकर जब किसी ने पत्रकारिता की शुरुआत की थी, तो न साथ में कोई बड़ी टीम थी, न ही सोशल मीडिया की ताकत। लेकिन जो चीज़ साथ थी, वो था जुनून—सच्चाई को सामने लाने का, जनता की आवाज़ को बुलंद करने का, और पत्रकारिता को एक मिशन की तरह जीने का। आज इस सफर को पूरे 19 साल हो चुके हैं, जिनमें से 16 साल एक संपादक के रूप में बिताना किसी गौरव से कम नहीं। जब टीवी पत्रकारिता में पहला कदम रखा, तब तकनीक सीमित थी और संसाधन कम। उस समय काशीपुर जैसे शहर की खबरों को किसी बड़े चैनल पर दिखा पाना अपने-आप में उपलब्धि मानी जाती थी। पास Panasonic थ्री-CCD कैमरा हुआ करता था, जो उस दौर में पत्रकारिता के लिए एक बड़ी तकनीकी शक्ति माना जाता था। वही कैमरा जनता की आवाज़ बन गया और उस आवाज़ ने हर उस कोने से खबरें उठाईं जिन्हें कोई पूछता तक नहीं था।
आरिफ खान ने सिर्फ रिपोर्टिंग नहीं की, बल्कि काशीपुर की अनसुनी-अनदेखी खबरों को धारदार और जनहितकारी अंदाज में पेश किया। हर खबर आरिफ खान के लिए ड्यूटी नहीं, एक मिशन थी—इस छोटे शहर की सच्चाई को मुख्यधारा तक पहुंचाने का। मेरी बनाई कई स्टोरीज़ चैनल पर खूब चलीं, लोगों में चर्चा बनीं और कई बार सत्ता और सिस्टम को जवाब देना पड़ा। पत्रकारिता के इस रास्ते में आरिफ खान ने कभी सत्ता के दबाव से समझौता नहीं किया, न ही किसी रसूखदार की धमकी से पीछे हटा। आरिफ खान का कैमरा और कलम सिर्फ सच्चाई के लिए झुकी, कभी किसी डर या लालच के लिए नहीं। उनके जब उस दौर को याद करते है तो आंखों के सामने वो तस्वीर घूम जाती है—हाथ में थ्री CCD कैमरा, आंखों में आत्मविश्वास, और दिमाग में सिर्फ एक मकसद—सच को सामने लाना। वो तस्वीर आरिफ खान के पूरे पत्रकारिता जीवन की कहानी है, जिसमें मेहनत, संघर्ष, और लोगों की उम्मीदें शामिल हैं गर्व होता है कि आरिफ खान द्वारा बनाई गई खबरों ने न सिर्फ दर्शकों को जोड़े रखा, बल्कि काशीपुर की पत्रकारिता को एक नई पहचान दी। आरिफ खान सिर्फ पत्रकार नहीं बना, बल्कि लोगों की आवाज़ बना। उनका यह सफर अब भी जारी है, हर दिन एकदम नई चुनौती, एक नई खबर, और एक नया उत्साह लेकर आता है। पत्रकारिता अब भी आरिफ खान के लिए पेशा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है।
और जब कोई जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाता है, तो सिर्फ नाम ही नहीं बनता—एक इतिहास भी लिखा जाता है।