काशीपुर में आवारा सांड और कुत्तों का आतंक! क्या महापौर दीपक बाली देंगे इस डर का समाधान?
काशीपुर नगर पालिका क्षेत्र इन दिनों एक अनदेखे मगर बेहद खतरनाक संकट से जूझ रहा है – आवारा सांडों और कुत्तों का बढ़ता आतंक। शहर के कई इलाकों में ये जानवर खुलेआम घूमते हैं, और आए दिन किसी न किसी राहगीर को निशाना बना लेते हैं। खासकर जब कोई व्यक्ति देर रात अस्पताल की ओर जाता है, तो कभी आवारा सांड सींग मार देते हैं तो कभी कुत्तों का झुंड चारों तरफ से घेर लेता है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि लोगों की जान खतरे में पड़ चुकी है और बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक घर से निकलने से डरने लगे हैं। यह सिर्फ वार्ड नंबर 36 की कहानी नहीं, बल्कि पूरे नगर पालिका क्षेत्र का हाल है। हर मोहल्ला, हर गली, हर वार्ड इस संकट से जूझ रहा है।
सबसे अफसोसजनक बात यह है कि इस समस्या को वर्षों से नजरअंदाज किया गया। न तो पूर्व महापौर उषा चौधरी ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया और न ही जिम्मेदार अफसरों ने। हर बार सिर्फ आश्वासन दिए गए, समाधान की बात कही गई, लेकिन नतीजा आज तक ज़ीरो रहा। आवारा जानवरों की संख्या बढ़ती गई और जनता की परेशानियां भी।
लेकिन अब तस्वीर थोड़ी बदली है। जनता ने अपने बहुमूल्य वोट से भारतीय जनता पार्टी के नेता दीपक बाली को नगर का मुखिया चुना है। दीपक बाली के नेतृत्व में विकास की एक नई लहर देखने को मिल रही है। सड़कों के निर्माण से लेकर बाजारों में जल निकासी की योजनाओं तक, उन्होंने कई ऐसे कार्यों की शुरुआत की है जो लंबे समय से अधर में लटके थे। उनकी कार्यशैली में गति है, सोच में स्पष्टता है और नीयत में ईमानदारी। यही वजह है कि अब जनता को उनसे इस गंभीर समस्या पर भी उम्मीद है।
The Great News के माध्यम से काशीपुर की जनता की यह आवाज़ महापौर तक पहुंचाई जा रही है कि अब समय आ गया है जब इस आतंक से निजात दिलाई जाए। लोग चाहते हैं कि दीपक बाली इस दिशा में भी एक ठोस योजना लेकर आएं। लेकिन एक अहम सवाल यह भी है कि अगर इन जानवरों को रेस्क्यू किया जाता है, तो उन्हें आखिर रखा कहां जाएगा या छोड़ा कहां जाएगा?
इस सवाल का भी उत्तर साफ है। उधम सिंह नगर सीमावर्ती इलाकों में कई ऐसे प्राकृतिक वन क्षेत्र हैं जहां इन जानवरों के रहने और खाने की पूरी व्यवस्था संभव है। जिम कॉर्बेट पार्क के नज़दीकी जंगल, तराई पश्चिमी डिवीजन के घने वन क्षेत्र, सीताबनी गेट, हाथी डगर जैसे इलाके – ये सभी ऐसे स्थान हैं जहां इन जानवरों को सुरक्षित छोड़ा जा सकता है। इससे न सिर्फ इंसानों की जिंदगी महफूज होगी, बल्कि इन बेजुबान जानवरों की जान भी।
अब सारी निगाहें महापौर दीपक बाली पर टिकी हैं। क्या वो इस मुद्दे पर भी उतनी ही गंभीरता दिखाएंगे, जितनी विकास कार्यों में दिखा रहे हैं? क्या काशीपुर को इस जानवरों के आतंक से मुक्ति दिलाई जाएगी? जनता अब इंतजार कर रही है – एक फैसले का, एक कार्रवाई का, और एक समाधान का।