संघर्षों के आठ साल बाद लौटा मासूम रिषभ सिर्फ गांव के नाम से खाने पडे कई चक्कर मोदीनगर…
इस एक शब्द ने मासूम रिषभ को आठ साल तक जगह-जगह भटकाया और फिर इसी के सहारे वह परिजनों से मिल पाया। यह उसकी बुआ के गांव का नाम है, जो प्रयागराज में है। 2014 में बुआ के घर से ही अपने घर लौटते समय वह बहन से बिछड़ गया था। घर के पते के नाम उसे सिर्फ यही एक शब्द याद था। इस पते के मिलने में इतना लंबा वक्त इसलिए लगा क्योंकि इसी नाम से असम और बिहार में भी गांव और गाजियाबाद में कस्बा है। एक जैसे नाम के चक्कर में वह असम, बिहार और गाजियाबाद के अनाथालयों में रहा। उसकी उम्र 14 साल हो जाने के बाद 2022 में सही पता मिल सका। तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कुछ दिन पहले ही उसे परिजनों के सुपुर्द किया गया। रिषभ केसरवानी का गांव प्रयागराज का शंकरगढ़ है। 2014 में वह बहन के साथ शंकरगढ़ से 10 किलोमीटर दूर बुआ के घर मोदीनगर गया था। वहां से लौटते समय भाई-बहन बिछड़ गए। बहन ने लोगों को अपने गांव का नाम बताया। उन्होंने उसे शंकरगढ़ भिजवा दिया। रिषभ भटकते हुए रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। वहां गोमती एक्सप्रेस में बैठ गया और दिल्ली जा पहुंचा। दिल्ली रेलवे स्टेशन से चाइल्ड हेल्प लाइन के जरिए उसे अनाथालय पहुंचा दिया गया। पता पूछने पर वह सिर्फ मोदीनगर ही बोलता था। तीन साल बाद असम के तिनसुकिया में मोदीपुरम नाम के गांव का पता चलने पर उसे वहां भेज दिया गया। वहां अनाथालय में रखा गया लेकिन मोदीपुरम गांव से रिषभ नाम का कोई बच्चा लापता नहीं मिला। किसी ने बताया कि इस नाम का गांव पटना के पास है। इस पर उसे पटना अनाथालय भेज दिया गया। यहां भी यही हुआ। गांव से कोई रिषभ लापता नहीं था। पिछले साल उसे गाजियाबाद अनाथालय भेजा गया क्योंकि यहां मोदीनगर नाम का कस्बा है। कहानी फिर से वहीं जाकर अटक गई। पुलिस ने बताया कि ऐसा कोई बच्चा लापता नहीं है।गांधी नगर स्थित उदय ओपन सेंटर अनाथालय में काम करने वाले चंदन सिंह ने इंटरनेट पर मोदीनगर को खोजना शुरू किया। वह कभी गांव मोदीनगर जिला अलीगढ़ खोजते तो कभी गांव मोदीनगर जिला लखनऊ। ऐसे करते-करते जैसे ही गांव मोदीनगर जिला प्रयागराज खोजा तो पता चला कि वहां शंकरगढ़ थाना क्षेत्र में इस नाम का गांव है। शंकरगढ़ थाना पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि वहां से 2014 में ऋषभ नाम का बच्चा लापता हुआ है। पुलिस की मदद से उसके माता-पिता को बुलाया गया।अनाथालय के बुलावे पर ऋषभ के पिता संतोष केसरवानी और मां मंजू केसवरवानी अनाथालय पहुंचे। वह उसकी छह साल उम्र की फोटो लाए थे। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ली गई उसकी फोटो भी मंगवा ली गई थी। इसके बाद गुमशुदगी दर्ज कराते वक्त शंकरगढ़ थाना पुलिस को दी गई फोटो से भी मिलान कराया गया। तीनों फोटो का मिलान होते ही तय हो गया कि यह बच्चा ही रिषभ है। जैसे ही रिषभ को मां-बाप के सुपुर्द किया गया उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। मां ने कलेजे से लगा लिया।संतोष केसरवानी ने बताया कि उन्होंने प्रयागराज और आस-पास के जिलों में लगने वाले मेलों, चौराहों, थानों, रेलवे स्टेशनों और अनाथालयों में रिषभ को ढूंढा। हर जगह निराशा मिली। बस भगवान पर भरोसा था। उसने सुन ली। वह बुआ से बहुत प्यार करता था, इसलिए बुआ के गांव का नाम ही याद रहा।