वयोवृद्ध नेता वी.एस. अच्युतानंदन का राजनीतिक सफर: ईमानदारी की मिसाल या वामपंथ की आखिरी लौ?
केरल की राजनीति में जब भी ईमानदारी, सादगी और संघर्ष की बात होती है, तो वी.एस. अच्युतानंदन का नाम सबसे पहले लिया जाता है। 1923 में जन्मे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संस्थापकों में से एक रहे अच्युतानंदन का राजनीतिक सफर एक मिसाल है। उन्होंने मजदूर आंदोलनों से शुरुआत की और केरल के मुख्यमंत्री (2006–2011) तक का सफर तय किया, वो भी तब जब उम्र 83 पार कर चुकी थी।
अच्युतानंदन का कार्यकाल भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख और जनहित में लिए गए फैसलों के लिए जाना जाता है। उन्होंने सरकारी जमीनों पर कब्जा हटाने से लेकर पर्यावरण की रक्षा तक कई ऐतिहासिक फैसले लिए। हालांकि पार्टी के भीतर मतभेदों के चलते वह बाद के वर्षों में अलग-थलग पड़ गए और अंततः 2018 में पॉलिट ब्यूरो से हटाए गए।
आज के दौर में जहां नेताओं पर निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, वहीं वी.एस. अच्युतानंदन जैसे नेता एक आदर्श बनकर खड़े हैं। उन्होंने कभी सरकारी बंगला नहीं लिया, पेंशन तक लेने से मना कर दिया और अब भी अपने बेटे के साथ सामान्य जीवन जीते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके पुराने भाषण और बयान वायरल होते रहते हैं, खासकर जब किसी राजनेता की सादगी की तुलना की बात होती है।
उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें ‘जननेता’ कहा जाता है, और उनकी ईमानदार छवि आज भी युवाओं को प्रेरित करती है। एक दौर था जब उनके खिलाफ पार्टी के ही कुछ नेता थे, लेकिन जनता का समर्थन हमेशा उनके साथ रहा।
केरल के इस ‘लाल योद्धा’ ने साबित कर दिया कि राजनीति सिर्फ सत्ता का खेल नहीं, बल्कि सेवा और संघर्ष का माध्यम भी हो सकती है।