अल्हम्दु शरीफ हिंदी में पूरा पढ़ें (Surah Al-Fatiha in Hindi)
अरबी तिलावत (हिंदी लिपि में):
1. बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर रहीम
2. अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
3. अर्रहमानिर रहीम
4. मालिकि यौमिद्दीन
5. इय्याका नअबुदु व इय्याका नस्तईन
6. इह्दिनास सिरातल मुस्तक़ीम
7. सिरातल्लज़ीना अनअम्ता अलैहिम ग़ैरिल मग़दूबे अलैहिम वलद्दााल्लीन
आमीन
🕌 हिंदी अनुवाद:
1. शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है।
2. सारी तारीफ़ें उस अल्लाह के लिए हैं जो सारे जहानों का पालनहार है।
3. बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला।
4. (जो) मालिक है रोज़े क़यामत का।
5. हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं।
6. हमें सीधा रास्ता दिखा।
7. उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने इनाम किया, जो ना तेरे ग़ज़ब का शिकार हुए और ना गुमराह हुए।
आमीन
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अल्हम्दु शरीफ, जिसे सूरह फातिहा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम की सबसे अहम सूरह मानी जाती है और यह क़ुरआन शरीफ की पहली सूरह है, जो कुल 7 आयतों पर आधारित है और नमाज़ की हर रकात में इसकी तिलावत फर्ज़ है। यह सूरह तौहीद (एकेश्वरवाद), रहमत, बंदगी और सीधा रास्ता दिखाने की दुआ का बेहतरीन संगम है और इसे “उम्मुल-किताब” यानी “किताबों की माँ” कहा जाता है। सूरह फातिहा की शुरुआत बिस्मिल्लाह से होती है जिससे जाहिर होता है कि हर नेक काम की शुरुआत अल्लाह के नाम से होनी चाहिए क्योंकि वही रहमत वाला है। इसके बाद ‘अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ से इस बात को ज़ाहिर किया जाता है कि हर तारीफ़ सिर्फ अल्लाह के लिए है, वही सारे जहानों का रब है — इंसानों का, जिन्नों का, जानवरों का, धरती-आसमान का, और हर वो चीज़ जिसका हमें और नहीं भी हमें इल्म है। इसके बाद ‘अर्रहमानिर रहीम’ अल्लाह की रहमत के दो पहलुओं को बयान करता है — रहमान जिसका मतलब है सबके लिए रहम, और रहीम यानी खास तौर पर मोमिनों के लिए रहमत वाला।
‘मालिकि यौमिद्दीन’ में अल्लाह की वह ताक़त बताई गई है कि वह क़यामत के दिन का अकेला मालिक है, जिसका फैसला अंतिम और निष्पक्ष होगा। फिर अगली आयतें हमें सीधा रास्ता मांगने की दुआ सिखाती हैं — ‘इय्याका नअबुदु व इय्याका नस्तईन’ यानी हम सिर्फ तेरा बंदा बनते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं। ‘इह्दिनास सिरातल मुस्तक़ीम’ में इंसान अपने रब से सही रास्ते की मांग करता है — ऐसा रास्ता जो नबियों, सिद्दीक़ीन, शहीदों और नेक लोगों का रहा है। ‘सिरातल्लज़ीना अनअम्ता अलैहिम’ इसी राह को दर्शाता है, जबकि ‘ग़ैरिल मग़दूबे अलैहिम वलद्दााल्लीन’ में उस राह से दूर रहने की दुआ की जाती है जो यहूद और ईसाई जैसे गुमराह और ग़ज़ब के शिकार लोगों का रास्ता है।
सूरह फातिहा न सिर्फ़ नमाज़ में अनिवार्य है, बल्कि हर दुआ की जड़ भी मानी जाती है, क्योंकि इसमें अल्लाह की तारीफ़, उसकी रहमत, उसके मालिक होने की घोषणा, उसकी इबादत और मदद की तलब, सीधा रास्ता और गुमराहियों से बचाव की मांग शामिल है। इस सूरह की विशेषता यह है कि यह एक सम्पूर्ण संवाद है बंदे और रब के बीच, जहाँ हर आयत के जवाब में अल्लाह फर्माता है — “मेरे बंदे ने मेरी तारीफ़ की”, “मेरे बंदे ने मुझसे दुआ की”, वगैरह।
इसीलिए इसे बार-बार दोहराना सिर्फ़ इबादत नहीं बल्कि तासीर (असर) से भरपूर दुआ भी है। कई हदीसों में सूरह फातिहा को शिफा की सूरह कहा गया है और इसे ‘रुहानी इलाज’ में इस्तेमाल किया गया है।
हर मुसलमान, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, मर्द हो या औरत, इस सूरह को ज़रूर याद करे और इसके मतलब को समझे ताकि वह अपनी नमाज़ों और दुआओं में सच्चा भाव ला सके। आज के दौर में जब लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तनाव, उलझन और गुमराही का शिकार हो जाते हैं, तो सूरह फातिहा एक रूहानी चाबी बनकर सामने आती है, जो सीधे अल्लाह से जुड़ने का रास्ता देती है। इसे हर नमाज़ में पढ़ा जाता है और इसके बिना कोई भी नमाज़ मुकम्मल नहीं मानी जाती।