उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू – क्या बदलेगा आम जनता के लिए? पूरी जानकारी यहां पढ़ें

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उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू – क्या बदलेगा आम जनता के लिए? पूरी जानकारी यहां पढ़ें

 

उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया है। 2024 की शुरुआत में राज्य विधानसभा द्वारा इस ऐतिहासिक बिल को पास किए जाने के बाद से ही पूरे देशभर में इसकी चर्चा जोरों पर है। इस कदम को भारत में समान नागरिक कानून की दिशा में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। Uniform Civil Code का अर्थ है कि एक समान कानून सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के नागरिकों पर समान रूप से लागू होगा – चाहे वह शादी हो, तलाक, उत्तराधिकार या गोद लेने जैसी निजी और पारिवारिक बातें हों। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि उत्तराखंड में UCC लागू होने के क्या मायने हैं, इसमें क्या नियम शामिल हैं, किसे फायदा मिलेगा और यह आम जनता की जिंदगी को कैसे प्रभावित करेगा।

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उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत लिया गया है, जिसमें राज्य सरकारों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे सभी नागरिकों के लिए एक समान सिविल कानून बना सकती हैं। यह कानून धर्म, जाति, लिंग, या पंथ के आधार पर किसी को भेदभाव किए बिना, सभी को एक ही कानूनी ढांचे में लाता है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने इस दिशा में पहल करते हुए ‘उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक 2024’ पास किया और अब यह कानून बन चुका है।

 

UCC में कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जो लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, अब राज्य में शादी की न्यूनतम उम्र महिलाओं के लिए 21 साल कर दी गई है, जो पहले 18 वर्ष थी। साथ ही, अब किसी भी धर्म के व्यक्ति को एक से ज़्यादा विवाह करने की इजाजत नहीं होगी। यानी बहुविवाह (Polygamy) को पूरी तरह अवैध घोषित कर दिया गया है। इसके अलावा, तलाक, गोद लेने, संपत्ति के अधिकार, और उत्तराधिकार संबंधी मामलों में भी सभी के लिए समान नियम लागू होंगे।

 

उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड में बेटियों को बराबर का अधिकार दिया गया है। इसका अर्थ है कि अब बेटा और बेटी दोनों माता-पिता की संपत्ति में बराबर के हकदार होंगे, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई परिवार से संबंधित क्यों न हों। साथ ही तलाक के मामलों में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा को लेकर भी विशेष प्रावधान शामिल किए गए हैं। कोर्ट की निगरानी में तलाक की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है।

 

गोद लेने के नियमों को भी अब धर्म से हटाकर एक ही कानूनी प्रक्रिया के तहत लाया गया है। पहले कुछ धर्मों में गोद लेना कानूनी रूप से मान्य नहीं होता था, लेकिन अब Uniform Civil Code लागू होने के बाद उत्तराखंड में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो, एक निश्चित प्रक्रिया के तहत बच्चे को गोद ले सकता है। यह कदम बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बेहद अहम माना जा रहा है।

 

राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि UCC का उद्देश्य किसी धर्म विशेष को निशाना बनाना नहीं, बल्कि सभी नागरिकों को एक समान कानूनी अधिकार देना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि यह कानून “सबका साथ, सबका विकास और सबका न्याय” के सिद्धांत पर आधारित है और इससे राज्य में महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समरसता और कानूनी पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।

 

वहीं, कुछ मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने UCC के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकता है और धार्मिक रीति-रिवाजों को नजरअंदाज करता है। हालांकि राज्य सरकार का कहना है कि संविधान में दिए गए धार्मिक अधिकारों को बरकरार रखते हुए यह कानून सिर्फ नागरिक अधिकारों को समान बनाने की दिशा में एक प्रयास है।

 

देश के अन्य राज्य भी उत्तराखंड के इस कदम की ओर देख रहे हैं। खासकर मध्यप्रदेश, असम और गुजरात जैसे राज्यों में भी UCC को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने पहले ही यह संकेत दिए हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की दिशा में विचार हो रहा है, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक फैसला नहीं लिया गया है।

 

UCC के लागू होने से लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी पर सीधा असर पड़ेगा, खासकर महिलाओं और बच्चों को इससे कानूनी सुरक्षा मिलेगी। धार्मिक रीति-रिवाजों से ऊपर उठकर अब सभी नागरिकों को समान कानून के तहत समान न्याय मिलेगा। हालांकि इसका क्रियान्वयन कितना प्रभावी होगा, यह समय बताएगा।

 

कुल मिलाकर, उत्तराखंड में Uniform Civil Code लागू होना एक ऐतिहासिक कदम है जो भारत में एक समान कानून व्यवस्था की नींव रखता है। यदि इसे ठीक ढंग से लागू किया गया, तो यह देशभर के नागरिकों के लिए एक मिसाल बन सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बाकी राज्य कब और कैसे इस मॉडल को अपनाते हैं और क्या केंद्र सरकार इसे पूरे भारत में लागू करने की दिशा में कदम उठाती है

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