भीषण गर्मी 2025: क्यों हर साल बढ़ रहा है तापमान और इससे कैसे बचें
भारत में 2025 की गर्मी अब तक की सबसे भयानक और असहनीय गर्मियों में से एक बन चुकी है, जहां मई और जून के महीने में तापमान ने कई राज्यों में 48 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ट्रेंड अगले कुछ वर्षों में और भी गंभीर हो सकता है। दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में लू (Heatwave) की स्थिति लगातार बनी हुई है, जिससे न सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे बल्कि स्वस्थ युवा भी गर्मी से बीमार पड़ रहे हैं, अस्पतालों में हीट स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और कई जगह तो बिजली-पानी की भारी किल्लत भी देखी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन (Climate Change), घटते जंगल, बढ़ती गाड़ियों की संख्या, AC और कूलर का अत्यधिक प्रयोग और औद्योगीकरण इस बढ़ती गर्मी के पीछे के सबसे बड़े कारण हैं। पहले जहां अप्रैल-मई की गर्मी जून के अंत तक ठंडी बारिश में बदल जाया करती थी, अब वही गर्मी सितंबर तक खिंच रही है, जिससे किसानों की फसलें जल रही हैं, पशु-पक्षी बेहाल हो रहे हैं और शहरों की हवा सांस लेने लायक भी नहीं रही। NASA और IMD (भारतीय मौसम विभाग) के अनुसार, 2025 के शुरुआती 6 महीने अब तक के सबसे गर्म वैश्विक महीने रहे हैं और एशिया में भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों में गिना गया है। इस बार की भीषण गर्मी ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं हमारी आधुनिकता ही हमारी तबाही का कारण तो नहीं बन रही? चिलचिलाती दोपहर में जब तापमान 45 डिग्री से ऊपर चला जाता है, तब बाहर निकलना किसी युद्ध से कम नहीं लगता, और यही कारण है कि स्कूलों में गर्मी की छुट्टियाँ बढ़ाई जा रही हैं, दफ्तरों में वर्क फ्रॉम होम के आदेश दिए जा रहे हैं और सरकारें दोपहर के समय निर्माण कार्य पर रोक लगाने जैसे कदम उठा रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये उपाय काफी हैं? यदि हमें आने वाले वर्षों में इस समस्या से निपटना है, तो हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर मिलकर काम करना होगा — जैसे कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना, सोलर एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाना, वाहनों का प्रयोग कम करना, पानी का संरक्षण करना, और हर साल Earth Hour या Environment Day को सिर्फ रस्म न मानकर एक गंभीर चेतावनी की तरह लेना होगा। इस साल गर्मी से बचाव के लिए डॉक्टरों ने सुझाव दिया है कि लोग दोपहर 12 से 4 बजे तक धूप में बाहर न निकलें, खूब पानी और नींबू-ORS जैसे लिक्विड पिएं, ढीले और हल्के रंग के कपड़े पहनें, और शरीर को हाइड्रेट रखें। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पारंपरिक उपायों जैसे कि खस की चटाई, गुलाब जल, मिट्टी के घड़े का पानी और आम पन्ना जैसी देसी चीजों का भी सहारा ले रहे हैं जो कि आधुनिक उपकरणों से कहीं बेहतर परिणाम दे रहे हैं। यदि आपके आस-पास कोई अकेला बुजुर्ग, पशु या बेसहारा इंसान हो तो उसे पानी देना और थोड़ी सी छांव मुहैया कराना न भूलें, क्योंकि यह सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, इंसानियत भी है। गर्मी अब सिर्फ एक मौसम नहीं रह गया, यह एक climate crisis बन चुकी है और इसका असर सिर्फ शरीर पर नहीं बल्कि दिमाग, नींद, तनाव और आर्थिक गतिविधियों पर भी दिखने लगा है। कृषि, बिजली, यातायात और श्रमिक वर्ग पर इसका गहरा असर पड़ा है, जिससे आम जनता की कमर टूट रही है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो 2030 तक स्थिति और विकराल हो सकती है — जहां साल का आधा हिस्सा 45 डिग्री तापमान के नीचे देखना ही मुश्किल होगा।
तो अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ शिकायत न करें, बल्कि अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं — क्योंकि गर्मी हम सबकी बनाई हुई है, और समाधान भी हमारे ही हाथ में है।