उत्तराखंड पुलिसकर्मी ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छा मृत्यु: शोषण, जेल और चुप्पी के बीच टूटी इंसानियत की आवाज
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां पुलिस विभाग में तैनात एक महिला कर्मचारी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। पीड़िता ने आरोप लगाया है कि एक पुलिस अधिकारी ने उसका शारीरिक और मानसिक शोषण किया, और जब उसने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उसे ही झूठे आरोपों में जेल भेज दिया गया। महिला के अनुसार, शिकायत करने पर उसे प्रताड़ित किया गया, कई पुलिसकर्मी उसके घर तक पहुंचकर उसे डराते-धमकाते रहे।
महिला कर्मचारी ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में अपनी स्थिति का मार्मिक विवरण देते हुए कहा कि “या तो मेरे शोषण के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, या फिर मुझे मरने की अनुमति दी जाए। मैं टूट चुकी हूं, अब और जीने की इच्छा नहीं बची है।”
इस घटना ने उत्तराखंड पुलिस की छवि को गहरा आघात पहुंचाया है। अगर इस मामले में आरोप सच साबित होते हैं, तो यह न केवल पुलिस विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विभाग के भीतर महिलाओं की सुरक्षा किस हद तक खतरे में है। सवाल यह है कि जब खुद पुलिस महकमे में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता इनसे कैसे उम्मीद करे कि वो उनकी सुरक्षा कर पाएंगे?
महिला का पत्र सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो चुका है और जनता में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। लोग पूछ रहे हैं – आखिरकार एक महिला पुलिसकर्मी को अपने ही सिस्टम के खिलाफ खड़ा होने के लिए अपनी जान की भीख क्यों मांगनी पड़ी?
वहीं कानूनी तौर पर “इच्छा मृत्यु” यानी Euthanasia भारत में विशेष परिस्थितियों में कोर्ट की अनुमति से दी जाती है, लेकिन इस मामले में यह मांग एक प्रताड़ित कर्मचारी की न्याय के लिए अंतिम पुकार बन गई है। इस पूरे प्रकरण ने सरकार, प्रशासन और समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारे सिस्टम में अब भी किसी की सुनवाई होती है या नहीं?
अब देखना यह है कि क्या उत्तराखंड पुलिस इस मामले की जांच में पारदर्शिता रख पाएगी या फिर यह मामला भी बाकी मामलों की तरह कागज़ों में दबकर रह जाएगा।