आयतुल कुर्सी क्या है
यह सूरह अल‑बकरह की आयत संख्या 255 है, जिसे Ayatul Kursi कहा जाता है, जिसका अर्थ “सिंहासन की आयत” है ।
इस आयत में अल्लाह की एकता, जीवित होना, समस्त ब्रह्मांड पर उसकी काबिज़गी और ज्ञान को विस्तार से वर्णित किया गया है ।
अल्लाह वह अज़ीज़ ज़ात है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, हमेशा ज़िंदा रहने वाला और सबका पोशाक-बहार है। उसे न ऊँघ आती है न नींद। वही हर चीज़ का मालिक है–आसमानों और धरती दोनों का। कौन वह है जो उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो सामने है और जो पीछे। लोग उसकी इल्म की कोई चीज़ नहीं समझ सकते सिवाय जो वह खुद चाहें। उसकी कुर्सी सारे आसमान और ज़मीन को घेरे हुए है, और उनकी हिफ़ाज़त उसे थकाती नहीं—वह अति महान है।
अरबी पाठ और लिप्यंतरण के लिए विकिपीडिया या ऑनलाइन Islamic Resources देखें ।
फज़ीलत: आयतुल कुर्सी के लाभ
पैग़ंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का वर्णन है कि जो फर्ज़ नमाज़ के बाद इसे पढ़ता है, वह अगले नमाज़ तक अल्लाह की हिफाज़त में रहता है ।
एक हदीस में आता है कि यह कुरान की “सर्वश्रेष्ठ आयत” है और इसे पढ़ने से शैतान दूर रहता है ।
अगर कोई सोने से पहले इसे पढ़ता है, तो एक फरिश्ता उसकी सुरक्षा करता है सुबह तक; घर, परिवार और पड़ोसी भी सुरक्षित रहते हैं ।
घर से बाहर निकलते समय पढ़ने पर 70,000 फरिश्ते सौंपे जाते हैं, और गरीबी दूर होती है ।
कब और कैसे पढ़ें
नमाज़ के बाद, सोने से पहले, घर से बाहर निकलते समय, या संकट के समय इसे पढ़ना हदीसानुसार मुस्तहब माना गया है ।
मुस्लिम धार्मिक विद्वानों के अनुसार इसे अक्सर दृष्टिहीनता से बचने, जन्नत हेतु, हादसे या बीमारी से बचने और घर की रक्षार्थ भी पढ़ा जाता है ।
सारांश तालिका
विषय विवरण
आइडेंटिटी सूरह अल‑बकरह आयत 255
मुख्य संदेश अल्लाह की एकता, शक्ति और संरक्षण
हिंदी तर्जुमा ऊपर दिया गया
प्रमुख फायदे हिफाज़त, शैतान से सुरक्षा, मानसिक शांति
हदीस में दर्ज यह आयातों की सरदार, पाठ से लाभ
कब पढ़ें? हर नमाज़ के बाद, सोने से पहले, यात्रा में, संकट में
अतिरिक्त संसाधन: