BRICS ने बदल दिया है पावर बैलेंस – क्या वेस्ट की बादशाहत अब खत्म होने वाली है
BRICS यानी ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका की यह साझेदारी अब केवल एक आर्थिक समूह नहीं रह गई है, बल्कि 2025 में यह वैश्विक राजनीति और पावर बैलेंस को सीधा चुनौती देने वाला एक मजबूत ब्लॉक बन चुका है, खासकर तब जब इस समूह में नए सदस्य जैसे सऊदी अरब, ईरान, यूएई और इजिप्ट जैसे देश भी शामिल हो चुके हैं जिससे इसकी ताक़त और विस्तार में जबरदस्त इज़ाफा हुआ है, आज BRICS विश्व की लगभग 45% जनसंख्या और 30% ग्लोबल GDP को कवर करता है जो इसे G7 जैसे पश्चिमी समूहों के समकक्ष ला खड़ा करता है, रूस और चीन की अगुवाई में BRICS अब डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की ओर बढ़ रहा है जहां De-dollarization की मुहिम तेज हो गई है और ब्रिक्स देशों के बीच एक नए साझा करेंसी सिस्टम की भी चर्चा चल रही है, वहीं भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था इस ब्लॉक को संतुलित स्वरूप दे रही है क्योंकि भारत न केवल पश्चिम के साथ भी रणनीतिक संबंध बनाए हुए है बल्कि ब्रिक्स के भीतर भी एक सॉफ्ट पॉवर की तरह संतुलन साध रहा है, ब्रिक्स समिट 2025 में जब PM नरेंद्र मोदी, व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग और अन्य राष्ट्राध्यक्ष एक मंच पर आए तो वैश्विक मीडिया की निगाहें इस बात पर टिकी थीं कि क्या BRICS अब केवल आर्थिक गठजोड़ रहेगा या यह एक समानांतर भू-राजनीतिक ताक़त बन जाएगा, खास बात यह भी रही कि इस साल BRICS ने अपनी पहली डिजिटल करेंसी पायलट योजना लॉन्च की है और क्रॉस-बॉर्डर ट्रांजैक्शन्स को अमेरिकी डॉलर के बिना पूरा करने का रास्ता साफ किया है, इसके साथ ही BRICS बैंक यानी New Development Bank अब अधिक फंडिंग अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में करने लगा है जिससे IMF और World Bank की मोनोपोली को सीधा टक्कर मिल रही है, दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय देशों की चिंता भी बढ़ गई है क्योंकि BRICS देश अब संयुक्त राष्ट्र में भी रिफॉर्म की मांग को ज़ोर-शोर से उठाने लगे हैं, जहां भारत खासतौर पर UNSC में स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा है और चीन भी इस पर सहमति जताता नजर आया है, लेकिन BRICS के भीतर की जमीनी हकीकत यह भी है कि रूस-चीन की करीबी और भारत-चीन के बीच सीमा विवादों की वजह से इस समूह में आपसी मतभेद भी मौजूद हैं, बावजूद इसके 2025 में ब्रिक्स का विस्तार और इसका बढ़ता वैश्विक प्रभाव इस बात का संकेत है कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो रही है, जहां एक तरफ़ पश्चिमी देश NATO, G7 और EU जैसे समूहों से दुनिया को चलाना चाहते हैं वहीं दूसरी तरफ़ BRICS जैसे गठजोड़ यह दिखा रहे हैं कि ग्लोबल साउथ अब अपने दम पर नई व्यवस्था बना सकता है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक व्यापार में डॉलर की निर्भरता को कम करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है और ऊर्जा लेनदेन में अब युआन और रुपये जैसी करेंसीज़ का उपयोग हो रहा है, इस साल भारत और रूस के बीच रूपी-रूबल ट्रेड डील, चीन और ब्राजील के बीच युआन-बेस्ड एनर्जी डील और सऊदी अरब का ब्रिक्स के साथ जुड़ाव इन सभी घटनाओं ने एक बात तो साफ कर दी है कि 21वीं सदी का अगला दशक केवल अमेरिका या यूरोप की कहानी नहीं होगी बल्कि ब्रिक्स जैसे समूहों की निर्णायक भूमिका इसमें होगी, अब देखना यह है कि क्या BRICS भविष्य में एक संयुक्त सैन्य गठबंधन या साइबर-सिक्योरिटी ब्लॉक भी बनाएगा या फिर यह आर्थिक मामलों तक ही सीमित रहेगा, लेकिन इतना तय है कि ग्लोबल पावर की टेबल पर अब सिर्फ वेस्ट नहीं बैठेगा, Global South भी बराबरी की कुर्सी चाहता है और BRICS उस आवाज़ का सबसे बुलंद मंच बन चुका है।