धर्मेन्द्र कुमार उपनिरक्षक और कांटेबल अशोक कुमार ने ट्रस्ट की मासूम बच्चियों के चेहरों पर बिखेरी मुस्कान

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धर्मेन्द्र कुमार उपनिरक्षक और कांटेबल अशोक कुमार ने ट्रस्ट की मासूम बच्चियों के चेहरों पर बिखेरी मुस्कान

                   सलीम अहमद साहिल 

 

रक्षाबंधन—प्रेम, विश्वास और सुरक्षा का वह पवित्र पर्व, जब एक साधारण-सा धागा भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक बन जाता है। यह धागा केवल कलाई को नहीं बांधता, बल्कि दिलों को जोड़ता है, वादों को संजोता है और जीवनभर साथ निभाने की कसमें खिलाता है। लेकिन इस बार, रामनगर विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्र मालधनचौड़ में रक्षाबंधन की यह रौनक कुछ ऐसी मासूम बच्चियों के लिए अनमोल बन गई, जिनके लिए यह त्योहार एक अविस्मरणीय स्मृति बनकर उभरा।

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मालधनचौड़ में बसा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ट्रस्ट, सरकार द्वारा संचालित एक ऐसा आश्रयस्थल है, जो उन बच्चियों के लिए ममता का आलिंगन बनता है, जिनके जीवन में त्रासदी ने दस्तक दी है। ये वे बच्चियां हैं, जिनके माता-पिता में से एक की असमय मृत्यु ने उनके बचपन को छीन लिया, और जिनके परिवार गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। दूरस्थ पहाड़ी गांवों और दुर्गम क्षेत्रों से शिक्षा, भोजन और आश्रय की आस लिए ये मासूम इस ट्रस्ट में पहुंची हैं, जहां उन्हें न केवल एक छत मिलती है, बल्कि सपनों को पंख भी मिलते हैं।

 

 

रक्षाबंधन के दिन, जब हर घर में राखी की थाल सज रही थी और बहनें अपने भाइयों की कलाई पर प्रेम का धागा बांध रही थीं, इस ट्रस्ट की बच्चियों की आंखों में एक खामोश उदासी थी। उनके पास न तो भाई थे, न ही वह रिश्ता जो इस त्योहार को उनके लिए सार्थक बना सके। लेकिन तभी, एक ऐसी पहल हुई, जिसने इस सन्नाटे को प्रेम और अपनत्व की गर्माहट से भर दिया।

मालधनचौड़ पुलिस चौकी प्रभारी धर्मेंद्र कुमार और कांस्टेबल अशोक कम्बोज, वर्दी में सजे, लेकिन दिलों में इंसानियत का उजाला लिए, इस ट्रस्ट में पहुंचे। उन्होंने इन बच्चियों से राखी बंधवाई और उनके चेहरों पर ऐसी मुस्कान बिखेरी, जो शब्दों से परे थी। उस पल, जब बच्चियों ने कांपते हाथों से राखी बांधी, हवा में एक अनकही खुशी तैर रही थी। यह सिर्फ एक रस्म नहीं थी—यह विश्वास, सुरक्षा और भाईचारे का एक ऐसा बंधन था, जो इन मासूमों के दिलों में जिंदगीभर के लिए बस गया।

 

 

 

 

ट्रस्ट की वार्डन सीमा आर्य उस पल को याद करते हुए भावुक हो उठीं। उनकी आंखों में चमक थी, जब उन्होंने कहा, “सुबह इन बच्चियों के चेहरों पर त्योहार की कमी साफ झलक रही थी। लेकिन पुलिसकर्मियों की इस अविस्मरणीय पहल ने न केवल उनके चेहरों पर मुस्कान लौटाई, बल्कि उनके मन में एक नया उत्साह और विश्वास जगा दिया। यह राखी उनके लिए सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि अपनत्व और सहारे का एक मजबूत रिश्ता बन गई।

 

 

चौकी प्रभारी धर्मेंद्र कुमार के लिए भी यह पल जीवन के सबसे अनमोल क्षणों में से एक था। उन्होंने कहा, “जब इन बच्चियों ने हमें राखी बांधी, तो ऐसा लगा जैसे हम उनके परिवार का हिस्सा बन गए। हमारा कर्तव्य सिर्फ कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं है; हमारा कर्तव्य है कि खुशियां और उम्मीद उन तक भी पहुंचे, जिनके पास कोई नहीं।

 

 

सरकार इन बच्चियों को शिक्षा, भोजन और आश्रय देकर उनके भविष्य को संवार रही है, लेकिन पुलिसकर्मियों की इस अविस्मरणीय पहल ने इस रक्षाबंधन को उनके लिए एक ऐसी याद में बदल दिया, जो उनके दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। यह सिर्फ एक त्योहार का उत्सव नहीं था—यह इंसानियत का एक ऐसा दस्तावेज था, जो यह सिखाता है कि प्रेम और भाईचारा खून के रिश्तों से परे है। यह एक ऐसा सबक था, जो समाज को याद दिलाता है कि सच्चा रिश्ता वह है, जो दिल से दिल को जोड़े, और हर उदास चेहरे पर मुस्कान बिखेरे।

 

 

यह रक्षाबंधन मालधनचौड़ की उन बच्चियों के लिए न केवल एक त्योहार था, बल्कि एक नई उम्मीद, एक नया विश्वास और एक नया रिश्ता था—जो उन्हें जिंदगीभर प्रेरित करता रहेगा।

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