रामनगर विधानसभा: एक दशक में बदलते समीकरण, भाजपा की घटती पकड़ और वोट सेंधमारी का खेल। पढ़िए पूरी खबर
सलीम अहमद साहिल
रामनगर विधानसभा सीट के पिछले दस वर्षों के चुनावी नतीजे केवल आंकड़े नहीं हैं, बल्कि यह एक राजनीतिक कहानी बयां करते हैं—एक ऐसी कहानी जिसमें सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भारतीय जनता पार्टी फिसलती नजर आती है, कांग्रेस अपनी स्थिरता बनाए रखती है, और बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवार हर बार चुनावी गणित में सेंधमारी करते रहे हैं।
2012 – बसपा और निर्दलीयों का बड़ा खेल
कुल मतदान: 64,468
कांग्रेस: 23,851 वोट (37.00%)
भाजपा: 20,122 वोट (31.21%)
बसपा + अन्य/निर्दलीय: 20,495 वोट (31.79%)
2012 के चुनाव में बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों ने मिलकर लगभग एक-तिहाई वोट बटोरे, जिससे कांग्रेस और भाजपा दोनों को भारी नुकसान हुआ। यह साल साफ तौर पर दिखाता है कि तीसरी ताकतें किस तरह मुख्य दलों की हार-जीत तय कर सकती हैं।
2017 – भाजपा का स्वर्णकाल
कुल मतदान: 77,563
भाजपा: 35,839 वोट (46.20%)
कांग्रेस: 27,228 वोट (35.10%)
बसपा + अन्य/निर्दलीय: 14,496 वोट (18.69%)
2017 में समीकरण पलट गए। बसपा और निर्दलीयों का वोट बैंक लगभग आधा हो गया, और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। भाजपा का वोट प्रतिशत 2012 से लगभग दोगुना हो गया—46.20%—जो रामनगर की राजनीति में उसका अब तक का सर्वोच्च प्रदर्शन था।
2022 – जीत के साथ बड़ी चोट
कुल मतदान: 83,403
भाजपा: 31,094 वोट (37.28%)
कांग्रेस: 26,349 वोट (31.60%)
बसपा + अन्य/निर्दलीय: 25,960 वोट (31.13%)
2022 में भाजपा ने जीत तो दर्ज की, लेकिन उसकी चमक फीकी पड़ चुकी थी। 2017 के मुकाबले भाजपा के वोट शेयर में 8.92% की बड़ी गिरावट आई, जबकि बसपा और निर्दलीयों का वोट बैंक फिर से उभरकर 31.13% तक पहुंच गया। नतीजतन, भाजपा के पारंपरिक वोटों में सेंधमारी हुई और कांग्रेस को अप्रत्यक्ष लाभ मिला।
मुख्य निष्कर्ष – राजनीतिक तस्वीर
भाजपा की कमजोर होती पकड़: 2017 में 46.20% वोट पाने वाली भाजपा 2022 में सिर्फ 37.28% पर सिमट गई। यह स्पष्ट संकेत है कि मतदाता आधार खिसक रहा है और विपक्षी खेमे की रणनीति असरदार हो रही है।
कांग्रेस की स्थिरता: कांग्रेस का वोट प्रतिशत हल्का गिरा जरूर, लेकिन 31.60% के साथ उसने अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखा, खासकर तब जब वोट-कटने वाले उम्मीदवारों का प्रभाव बढ़ गया था।
वोट सेंधमारी का निर्णायक रोल: 2012 और 2022 दोनों ही चुनावों में बसपा और निर्दलीयों का संयुक्त वोट बैंक लगभग एक-तिहाई रहा, जिसने मुख्य दलों के समीकरण बिगाड़े और रामनगर की राजनीति को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया।
निर्णायक भूमिका की अदृश्य ताकत
रामनगर की चुनावी रणनीति इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यहां मुकाबला केवल दो प्रमुख दलों तक सीमित नहीं रहता। निर्दलीय और अन्य दलों के प्रत्याशी हर बार भाजपा और कांग्रेस—दोनों के लिए समीकरण बिगाड़ते हुए उनके वोट बैंक में सेंधमारी करते हैं। पहली नजर में यह संघर्ष त्रिकोणीय दिखाई देता है, लेकिन असलियत में ये “तीसरी ताकतें” अक्सर निर्णायक मोड़ पर किसी एक दल को बढ़त दिलाने या उसकी हार सुनिश्चित करने का काम करती हैं। यही कारण है कि रामनगर में हर चुनाव एक अप्रत्याशित मोड़ और राजनीतिक रोमांच के साथ समाप्त होता है—जहां विजेता की सूची में निर्दलीयों की भूमिका अदृश्य होते हुए भी भाजपा और कांग्रेस के लिए निर्णायक रहती है। लेकिन 2022 के चुनाव ने भाजपा के एक बड़े वोट बैंक को निर्दलीय के पाले मे खड़ा किया 2022 मे भाजपा को 8.92% वोट की बड़ी चोट निर्दलीय ने पहुंचाई तो वही दूसरी और कांग्रेस के वोट बैंक को 3.5% की चोट पहुंचाई और अन्य पार्टी और निर्दलीय 31.13% पर आकर खड़े हुए