चुनाव 2025 में ग्रीन पॉलिटिक्स का जलवा – क्या पर्यावरण फ्रेंडली नीतियां वाकई असरदार हैं
भारत में 2025 का चुनावी माहौल इस बार केवल बेरोजगारी, महंगाई और विकास जैसे पारंपरिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि पर्यावरण (Environment) भी एक बड़ा एजेंडा बनकर उभर रहा है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change), वायु प्रदूषण (Air Pollution), प्लास्टिक बैन, नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) और ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे विषय अब चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बन चुके हैं। कई राजनीतिक दल अपने मैनिफेस्टो में Zero Carbon Emission Target, सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स, और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के प्रमोशन जैसे वादे कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या ये पर्यावरण फ्रेंडली नीतियां वाकई में जनता के वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर रही हैं, या फिर ये केवल एक चुनावी मार्केटिंग रणनीति हैं? चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि शहरी वोटर्स, खासकर युवा और पढ़ा-लिखा वर्ग, अब जलवायु और प्रदूषण से जुड़े वादों को गंभीरता से लेने लगे हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में वायु प्रदूषण स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, जिसके कारण वहां की जनता इस बार नेताओं से ठोस एक्शन प्लान की मांग कर रही है।
इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग है क्योंकि पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों में भी पर्यावरणीय मुद्दों की चर्चा हो रही है। जल संकट, फसल पैटर्न में बदलाव और मिट्टी की उर्वरता घटने जैसी समस्याओं ने किसानों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। यही कारण है कि कई राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी भाषणों में जल संरक्षण (Water Conservation), ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) और सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के मुद्दों को शामिल कर रही हैं। कुछ राज्यों में सोलर पंप, वर्षा जल संचयन योजनाएं और बायोगैस प्लांट को बढ़ावा देने वाले प्रोजेक्ट भी मैनिफेस्टो का हिस्सा हैं। यहां तक कि चुनाव प्रचार के दौरान भी पार्टियां ‘ग्रीन कैंपेनिंग’ अपना रही हैं — जैसे डिजिटल पोस्टर, ई-लिफलेट, इलेक्ट्रिक कैंपेन व्हीकल और रैलियों में प्लास्टिक-मुक्त इंतजाम।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर राजनीतिक पार्टियां अपने वादों को गंभीरता से लागू करें तो यह न केवल पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगा बल्कि लंबे समय में आर्थिक लाभ भी देगा। उदाहरण के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा के प्रोजेक्ट न केवल प्रदूषण कम करेंगे बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेंगे। 2025 में यह ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है कि जिन क्षेत्रों में पर्यावरणीय नीतियों पर बेहतर काम हुआ है, वहां जनता का झुकाव मौजूदा सरकार के प्रति ज्यादा है। हालांकि, एक वर्ग का मानना है कि पर्यावरण के मुद्दे केवल चुनावी भाषणों