Election 2025 – यूपी और महाराष्ट्र में चुनावी जंग का हाई-वोल्टेज ड्रामा
लोकसभा चुनाव 2025 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और महाराष्ट्र (Maharashtra) पर पूरे देश की नज़रें टिकी हैं, क्योंकि ये दोनों राज्य न सिर्फ सीटों की संख्या के लिहाज़ से बड़े हैं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का रुख बदलने की ताकत भी रखते हैं। उत्तर प्रदेश में 80 और महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं, यानी कुल 128 सीटें जो सत्ता की चाबी अपने पास रखती हैं। इस बार यहां मुकाबला और भी दिलचस्प है क्योंकि राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियां भी आक्रामक मोड में हैं और हर सीट जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही हैं। यूपी में बीजेपी (BJP) राम मंदिर उद्घाटन, सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, कानून-व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा को अपना मुख्य मुद्दा बना रही है, जबकि समाजवादी पार्टी (SP) बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं और महंगाई को लेकर जनता के बीच जा रही है, वहीं बसपा (BSP) और कांग्रेस (Congress) भी अपने-अपने जातीय और सामाजिक समीकरणों पर दांव लगा रही हैं। पूर्वांचल, पश्चिम यूपी और बुंदेलखंड में अलग-अलग मुद्दे हावी हैं – कहीं धार्मिक भावनाएं, कहीं किसान आंदोलन की गूंज, तो कहीं युवा वोटर की नाराज़गी चर्चा में है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में राजनीति और भी पेचीदा है क्योंकि यहां शिवसेना का शिंदे गुट, उद्धव ठाकरे गुट, एनसीपी का अजित पवार गुट और शरद पवार गुट के बीच टकराव चल रहा है, वहीं बीजेपी यहां विकास, मेट्रो प्रोजेक्ट, बुलेट ट्रेन और रोजगार सृजन को लेकर चुनावी वादे कर रही है। महाराष्ट्र के शहरी इलाकों में सोशल मीडिया कैंपेन और डिजिटल प्रचार का असर साफ दिख रहा है, जबकि ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या, किसानों का कर्ज माफ और मराठा आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि यूपी में जहां जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा हावी हैं, वहीं महाराष्ट्र में विकास बनाम क्षेत्रीय पहचान की बहस चल रही है। दोनों ही राज्यों में महिला मतदाता और पहली बार वोट देने वाले युवा चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। नेताओं के रोड शो, पदयात्राएं, जनसभाएं और सोशल मीडिया पर तीखी बयानबाज़ी माहौल को और गरमा रही है। 2025 के नतीजे साफ करेंगे कि क्या यूपी में बीजेपी का हिंदुत्व-प्लस-विकास फार्मूला कामयाब होता है या विपक्ष की एकजुटता गेम बदल देती है, और क्या महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति बड़े दलों को चुनौती दे पाती है या नहीं, लेकिन इतना तय है कि इन दोनों राज्यों की सियासी लड़ाई ही दिल्ली की सत्ता का रास्ता तय करेगी