Election 2025 – भारत में ई-वोटिंग का विस्तार और चुनावी प्रक्रिया में बदलाव
भारत में ई-वोटिंग (Electronic Voting) का सफर पिछले दो दशकों में धीरे-धीरे लेकिन प्रभावी तरीके से आगे बढ़ा है, जहां 1998 में पहली बार कुछ चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में Electronic Voting Machines (EVMs) का प्रयोग किया गया था और 2004 के आम चुनाव तक इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। अब Election 2025 के संदर्भ में ई-वोटिंग का दायरा सिर्फ EVM तक सीमित नहीं रहा, बल्कि तकनीकी प्रगति और डिजिटल इंडिया मिशन के तहत रिमोट ई-वोटिंग सिस्टम, ब्लॉकचेन-बेस्ड वोटिंग टेक्नोलॉजी, और वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जैसी आधुनिक सुविधाएं भी जुड़ चुकी हैं। चुनाव आयोग ने हाल के वर्षों में रिमोट वोटिंग मशीन का परीक्षण शुरू किया है, जिससे प्रवासी मजदूर, दूसरे राज्यों में पढ़ रहे छात्र या विदेश में रह रहे भारतीय भी अपने वोटिंग अधिकार का इस्तेमाल कर सकें। इस पहल से उम्मीद है कि वोटर टर्नआउट में बढ़ोतरी होगी और मतदान प्रक्रिया अधिक समावेशी बनेगी। ई-वोटिंग के फायदे स्पष्ट हैं — तेज और सटीक वोट काउंटिंग, मानवीय त्रुटियों में कमी, पारदर्शिता में सुधार और चुनावी खर्च में कमी। हालांकि, इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं जैसे साइबर सुरक्षा खतरे, हैकिंग का डर, टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में ग्रामीण और बुजुर्ग मतदाताओं के लिए कठिनाई, और कुछ राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठाए जाने वाले सवाल। चुनाव आयोग लगातार सुरक्षा प्रोटोकॉल को मजबूत करने, मशीनों के मल्टी-लेयर ऑडिट और हैक-प्रूफ डिज़ाइन पर जोर दे रहा है। 2025 के चुनावों में कई राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऑनलाइन वोटिंग ट्रायल की योजना भी चर्चा में है, जो आने वाले वर्षों में मतदान को पूरी तरह डिजिटल बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तकनीकी पारदर्शिता, डेटा प्रोटेक्शन और मतदाताओं की डिजिटल साक्षरता पर ध्यान