Assembly Elections 2025 वोटिंग पर कैमरा निगरानी की मांग, BDC चुनाव जैसे सुझाव फिर चर्चा में
विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र एक नई बहस सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ रही है, जिसमें कई नागरिक संगठनों, चुनावी सुधार कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं ने वोटिंग प्रक्रिया पर कैमरा निगरानी (Camera Surveillance) लागू करने की मांग की है, ठीक वैसे ही जैसे कुछ राज्यों में BDC (Block Development Council) चुनावों के दौरान किया गया था। समर्थकों का कहना है कि मतदान केंद्रों पर कैमरा लगाने से चुनाव में पारदर्शिता बढ़ेगी, बूथ कैप्चरिंग और फर्जी वोटिंग की घटनाओं पर रोक लगेगी, और मतदाताओं को भी भरोसा मिलेगा कि उनका वोट सुरक्षित है। बीते BDC चुनावों में कई जिलों में CCTV कैमरे और वेबकास्टिंग का उपयोग किया गया था, जिसका नतीजा यह निकला कि विवादित वोटों की संख्या में गिरावट आई और चुनाव आयोग को शिकायतों की जांच में भी आसानी हुई। इस बार विधानसभा चुनावों में इस तरह की टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर चर्चा इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि पिछले चुनाव में कई सीटों पर पुनर्मतदान (Re-poll) करवाना पड़ा था, जिसका कारण अनियमितताएं और मारपीट की घटनाएं बताई गई थीं। हालांकि, इस मांग को लेकर विपक्षी दलों के बीच मतभेद है—कुछ का मानना है कि कैमरा निगरानी से मतदाताओं की गोपनीयता (Privacy) पर असर पड़ सकता है और ग्रामीण इलाकों में तकनीकी खामियों के कारण कई बार यह व्यवस्था विफल भी हो सकती है। वहीं, समर्थक पक्ष का तर्क है कि कैमरों का इस्तेमाल सिर्फ मतदान केंद्र के सामान्य क्षेत्र में होगा, न कि EVM के अंदर या वोट डालने वाले क्षेत्र में, जिससे वोट की सीक्रेसी बनी रहेगी। चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, वे इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और अगर सभी राज्यों से सहमति मिली तो चुनिंदा संवेदनशील और अति-संवेदनशील मतदान केंद्रों पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कैमरा निगरानी लागू की जा सकती है। इस बीच ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #CameraSurveillanceVoting और #TransparentElections जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां लोग BDC चुनाव के अनुभवों का हवाला देकर विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह की व्यवस्था लागू करने की अपील कर रहे हैं। कुछ चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह कदम उठाया गया तो भारत की चुनावी प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव आएगा, जो भविष्य में लोकसभा और नगर निकाय चुनावों तक भी फैल सकता है, और इससे मतदाता जागरूकता, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक विश्वास में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हो सकती है