विद्यालय का महत्व, भूमिका  और वर्तमान शिक्षा प्रणाली की चुनौतियाँ – पूरी जानकारी

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विद्यालय का महत्व, भूमिका  और वर्तमान शिक्षा प्रणाली की चुनौतियाँ – पूरी जानकार

 

विद्यालय, जिसे हम स्कूल भी कहते हैं, बच्चों के लिए शिक्षा और व्यक्तित्व विकास का सबसे पहला और महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ न सिर्फ पढ़ाई-लिखाई होती है बल्कि बच्चे के अंदर अनुशासन, नैतिकता, सामाजिक व्यवहार और जिम्मेदारी की भावना भी विकसित होती है। विद्यालय वह स्थान है जहाँ शिक्षक (Teacher) और विद्यार्थी (Student) के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान होता है और यह प्रक्रिया बच्चे के जीवनभर के भविष्य को आकार देती है। भारत में विद्यालय दो मुख्य श्रेणियों में बाँटे जाते हैं – सरकारी विद्यालय और निजी विद्यालय। सरकारी विद्यालय मुख्य रूप से सरकार द्वारा संचालित होते हैं जहाँ कम या मुफ्त शुल्क में शिक्षा दी जाती है, वहीं निजी विद्यालय अपेक्षाकृत महंगे होते हैं और अधिक सुविधाओं के साथ पढ़ाई कराते हैं। आज के समय में विद्यालय सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रह गए हैं बल्कि यहाँ डिजिटल लर्निंग, स्मार्ट क्लास, प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग और एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज़ भी शामिल हैं जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। विद्यालय का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यही वह जगह है जहाँ बच्चा अपने जीवन की बुनियाद रखता है – भाषा सीखता है, गणितीय ज्ञान पाता है, विज्ञान और समाज के बारे में समझ बनाता है और जीवन के मूल्यों को आत्मसात करता है। शिक्षा के अधिकार कानून (RTE Act) के तहत भारत में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए विद्यालय में पढ़ना अनिवार्य है। हालांकि, आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की अनुपलब्धता, और आधारभूत सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। वहीं, शहरी विद्यालयों में अत्यधिक प्रतियोगिता, महंगी फीस और मानसिक दबाव बच्चों के लिए चिंता का विषय है। विद्यालय केवल किताबें पढ़ाने की जगह नहीं बल्कि बच्चों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और जिम्मेदार नागरिक बनाने का केंद्र है। यहाँ खेल-कूद, कला, संगीत, वाद-विवाद, विज्ञान प्रदर्शनियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों की छुपी प्रतिभाओं को निखारा जाता है। आधुनिक शिक्षा पद्धति में विद्यालयों ने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा दिया है जैसे ऑनलाइन क्ला

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