भारत-रूस संबंधों पर अमेरिकी हथियारों का असर – बदलते समीकरणों पर दुनिया की नजर

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भारत-रूस संबंधों पर अमेरिकी हथियारों का असर – बदलते समीकरणों पर दुनिया की नजर

 

भारत-रूस संबंध (India-Russia Relations) दशकों से रक्षा और रणनीतिक सहयोग पर आधारित रहे हैं, लेकिन अब बदलते वैश्विक हालात और अमेरिकी हथियारों (US Weapons) की बढ़ती मौजूदगी ने इन रिश्तों पर नया असर डालना शुरू कर दिया है। हाल ही में भारत ने अमेरिका से अत्याधुनिक लड़ाकू ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और रक्षा तकनीक खरीदने के कई सौदे किए हैं, जिससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या इससे भारत-रूस की परंपरागत साझेदारी कमजोर होगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि शीत युद्ध काल से ही भारत रूस का बड़ा रक्षा साझेदार रहा है और आज भी भारतीय सेना के लगभग 60–70% हथियार रूस से आए हैं। सुखोई-30, मिग-29, टी-90 टैंक और एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम जैसी बड़ी सैन्य ताकतें रूस की देन हैं। लेकिन अमेरिका की ओर से आधुनिक तकनीक और इंडो-पैसिफिक रणनीति (Indo-Pacific Strategy) में भारत को अहम भूमिका देने की वजह से भारत धीरे-धीरे अपने रक्षा सहयोग को diversify कर रहा है।

 

इस बदलाव का सीधा असर भारत-रूस संबंधों पर पड़ सकता है। रूस पहले से ही यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) में पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और अब भारत का अमेरिकी हथियारों की ओर झुकाव उसे कूटनीतिक रूप से असहज कर सकता है। हालांकि भारत ने बार-बार यह साफ किया है कि उसकी विदेश नीति “Strategic Autonomy” पर आधारित है और वह किसी भी एक धुरी पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

 

अमेरिका के साथ बढ़ते रक्षा समझौते भारत को तकनीकी बढ़त और सुरक्षा में मजबूती देंगे, लेकिन इसके साथ ही रूस को यह संदेश भी जाएगा कि भारत अब केवल एक परंपरागत साझेदार पर निर्भर नहीं है। रूस ने भी इस बदलते परिदृश्य को भांपते हुए भारत को ऊर्जा, परमाणु सहयोग और अंतरिक्ष क्षेत्र में अधिक आकर्षक सौदे देने की कोशिश शुरू कर दी है।

 

कई विश्लेषक मानते हैं कि भारत इस समय संतुलन की राजनीति (Balancing Act) कर रहा है। एक ओर वह रूस से कच्चा तेल और हथियार ले रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप से आधुनिक तकनीक और निवेश आकर्षित कर रहा है। यही वजह है कि भारत की कूटनीति को “Multi-Alignment” कहा जा रहा है।

 

सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर बहस तेज है। कुछ लोग मानते हैं कि भारत का यह कदम जरूरी है क्योंकि सुरक्षा की दृष्टि से अमेरिका की तकनीक भविष्य के युद्धों के लिए बेहतर साबित होगी। वहीं रूस समर्थक विश्लेषकों का कहना है कि अगर भारत रूस से दूरी बनाता है तो लंबे समय से चले आ रहे ऐतिहासिक भरोसे पर असर पड़ेगा।

 

कुल मिलाकर, अमेरिकी हथियारों का असर भारत-रूस संबंधों पर साफ दिखने लगा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपने पारंपरिक सहयोगी रूस और रणनीतिक साझेदार अमेरिका के बीच कैसे संतुलन साधता है।

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