जेल में 30 दिन से अधिक रहने पर CM/PM का पद समाप्त हो सकता है” — संवैधानिक संशोधन बिल तैया
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक बड़ा और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए लोकसभा में हाल ही में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन प्रस्ताव पारित किया गया है जिसके अनुसार यदि कोई मुख्यमंत्री (CM) या प्रधानमंत्री (PM) किसी भी कारणवश जेल में 30 दिनों से अधिक समय तक बंद रहता है तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा, यह संशोधन भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है क्योंकि अब तक भारतीय संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था जो यह निर्धारित करे कि जेल जाने पर कितने दिनों के भीतर कोई पदाधिकारी अयोग्य माना जाएगा, हालांकि प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत यदि किसी नेता को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती थी लेकिन इस नए बिल के आने के बाद नियम और भी सख्त हो जाएंगे, जिससे राजनीति में ईमानदारी और पारदर्शिता की उम्मीद बढ़ेगी।
इस बिल को लेकर संसद में लंबी बहस हुई, विपक्ष ने इसे सरकार द्वारा विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का उपकरण करार दिया जबकि सत्ता पक्ष का तर्क था कि लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हो सकता और यदि कोई इतना बड़ा जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार, आपराधिक गतिविधियों या किसी गंभीर अपराध के आरोप में जेल में बंद है तो जनता का विश्वास उस पर नहीं रहना चाहिए, ऐसे में यह प्रावधान आवश्यक है, सत्ता पक्ष के नेताओं ने यह भी कहा कि यह कदम भारत को स्वच्छ राजनीति की दिशा में आगे ले जाएगा और भविष्य में ऐसे प्रावधान अन्य जनप्रतिनिधियों और संवैधानिक पदों के लिए भी लागू हो सकते हैं।
संविधान विशेषज्ञों ने इस बिल पर अलग-अलग राय रखी है, कुछ का कहना है कि यह संविधान की मूल आत्मा और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप है क्योंकि जनता को साफ-सुथरे और ईमानदार नेता मिलने चाहिए, वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह संशोधन लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो सकता है क्योंकि किसी व्यक्ति को अदालत में दोषी सिद्ध होने से पहले ही अयोग्य ठहराना न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत होगा, उन्होंने यह भी कहा कि कई बार नेताओं को राजनीतिक कारणों से फर्जी मामलों में फंसाकर जेल भेज दिया जाता है और अगर वे 30 दिन से ज्यादा जेल में रहे तो क्या यह उचित होगा कि उनका पद तुरंत समाप्त कर दिया जाए, इस पर अभी भी गहन चर्चा और समीक्षा की आवश्यकता है।
जनता के बीच इस बिल को लेकर उत्सुकता और चर्चा का माहौल बना हुआ है, खासकर युवाओं और शहरी मतदाताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है क्योंकि वे लंबे समय से राजनीति से अपराधियों को दूर करने की मांग कर रहे थे, सोशल मीडिया पर #CleanPolitics और #NoCriminalsInPolitics जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं, वहीं कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या यह प्रावधान वास्तव में राजनीति को अपराधमुक्त करेगा या फिर यह विपक्ष को कमजोर करने का नया तरीका बनेगा, कई लोग इसे चुनावी राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं और कह रहे हैं कि 2026 के आम चुनाव से पहले इस बिल को लाना कहीं न कहीं सत्ताधारी दल की रणनीति का हिस्सा है।
अगर इस संशोधन को राज्यसभा से भी मंजूरी मिल जाती है और राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो जाती है तो यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ होगा, अब तक जिन नेताओं पर गंभीर आरोप लगे होने के बावजूद वे सालों तक पद पर बने रहते थे, उनकी स्थिति बदल जाएगी, यह प्रावधान नेताओं को कानून का पालन करने और साफ-सुथरी छवि बनाए रखने के लिए मजबूर करेगा, हालांकि इसके दुरुपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि भारतीय राजनीति में प्रतिद्वंद्वियों को फंसाने के लिए कानून और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की लंबी परंपरा रही है।