काशीपुर सरकारी अस्पताल पर उठ रहे सवाल – आखिर आशाओं और निजी लैब का रिश्ता क्या है?
अज़हर मलिक
काशीपुर सरकारी अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। यहाँ इलाज कराने आने वाली गर्भवती महिलाओं को आशाएं न सिर्फ सरकारी जांच से दूर ले जा रही हैं बल्कि उनका रुख अक्सर एक ही निजी लैब की ओर दिखाई देता है। यह लैब है सूर्य पैथोलॉजी रिसर्च सेंटर। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस लैब और आशाओं का रिश्ता क्या है?
इलाज और जांच के लिए सरकारी अस्पताल में पूरी व्यवस्था मौजूद है, फिर भी कई बार मरीजों को बाहर भेजा जाता है। परिजन भी यह मानने लगे हैं कि आशाएं कहीं न कहीं गर्भवती महिलाओं को प्राइवेट जांच की ओर कन्वेंस करती हैं। यह सिलसिला यूं ही चल रहा होता तो शायद मामला बड़ा नहीं लगता, लेकिन दिलचस्प पहलू यह है कि जब से सीएमएस CMS (Chief Medical Superintendent) डॉ. दीक्षित ने चार्ज संभाला है, तब से आशाओं का रुख इस ओर और बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है।
क्या यह महज़ इत्तेफाक है या फिर इसके पीछे कोई और वजह छुपी है? इस पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन जनमानस में सवाल लगातार उठ रहे हैं। लोगों की जुबान पर यही चर्चा है कि आखिर जब सरकारी अस्पताल में जांच की सुविधा है, तब आशाएं गर्भवती महिलाओं को निजी पैथोलॉजी में क्यों लेकर जा रही हैं? क्या इसमें किसी तरह का आर्थिक लाभ या कमीशन का खेल छुपा है? या फिर यह सब सिर्फ अफवाहें हैं?
वहीं इलाज को लेकर भी कई बार देखा गया है कि गंभीर स्थिति वाली गर्भवती महिलाओं को आशाओं द्वारा निजी अस्पतालों की ओर मोड़ा जाता है। यह सिलसिला भी सवाल खड़े करता है कि आखिर सरकारी अस्पताल पर भरोसा क्यों नहीं किया जा रहा।
सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता और जनता का विश्वास बेहद ज़रूरी है। लेकिन जब आशाओं की मौजूदगी सीधे निजी लैब और प्राइवेट हॉस्पिटलों के साथ देखने को मिलती है, तो शक और भी गहरा हो जाता है। जनपद में यह चर्चा आम हो चुकी है कि कहीं न कहीं कोई ‘अदृश्य डोर’ है जो सरकारी अस्पताल से प्राइवेट लैब तक बंधी हुई है।
अब सवाल यह है कि आखिर डॉ. दीक्षित के चार्ज संभालने के बाद से आशाओं का रुख इस ओर क्यों बढ़ा? क्या वास्तव में सीएमएस और निजी लैब के बीच कोई कनेक्शन है, या फिर यह सब महज़ संयोग है?
फिलहाल इस पूरे मामले की कोई पुख्ता पुष्टि नहीं है, लेकिन खबरें और चर्चाएं एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रही हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन इस ओर ध्यान देता है या नहीं, क्योंकि जनता का सवाल अब सीधा और स्पष्ट है — “आखिर आशाओं और निजी लैब का रिश्ता क्या है?”