आयुष्मान योजना पर बरेली में बड़ा सवाल: नोडल अधिकारी और शिकायत प्रकोष्ठ की मिलभगत से सिस्टम में खेल? जांचों की गति धीमी, गरीब मरीज परेशान

Advertisements

आयुष्मान योजना पर बरेली में बड़ा सवाल: नोडल अधिकारी और शिकायत प्रकोष्ठ की मिलभगत से सिस्टम में खेल? जांचों की गति धीमी, गरीब मरीज परेशान

शानू कुमार

बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में आयुष्मान भारत योजना को लेकर गंभीर अनियमितताओं के संकेत सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि नोडल अधिकारी एसीएमओ डॉ राकेश सिंह और आयुष्मान शिकायत प्रकोष्ठ आमिर बेग के बीच ऐसी गहरी सांठगांठ चल रही है, जिसने गरीबों को मुफ्त इलाज दिलाने वाली इस योजना को “कमाई का ज़रिया” बना दिया है। जब शिकायतों और जांच प्रगति पर अधिकारियों से सवाल पूछे गए, तो नोडल अधिकारी लगातार जवाब देने से बचते रहे, वहीं शिकायत प्रकोष्ठ अधिकारी ने जिम्मेदारी नोडल अधिकारी पर डालकर मामले को टाल दिया। तीन महीने के शिकायत रिकॉर्ड तक सही तरीके से उपलब्ध नहीं कराए जा सके, जिससे संदेह और गहरा जाता है।

Advertisements

 

जिले के कई निजी अस्पतालों में विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के कारण योजना का दुरुपयोग होने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अस्पतालों पर की जाने वाली जांच सिर्फ कागजों में दिखाई जाती है, जबकि जमीनी स्तर पर कोई वास्तविक निरीक्षण नहीं होता। शिकायतें बिना वेरिफिकेशन क्लोज़ कर दी जाती हैं और कई मामलों में “सिर्फ फाइल भरने” का काम किया जाता है।

 

योजना का उद्देश्य गरीब परिवारों को बिना खर्च इलाज उपलब्ध कराना था, लेकिन बरेली में कई अस्पतालों ने इसे कमाई के साधन में बदल दिया है। पहले जोड़तोड़ करके अस्पतालों को आयुष्मान पैनल में शामिल कराया जाता है और फिर मरीजों से जांच, दवाई और पैथोलॉजी के नाम पर पैसे वसूले जाते हैं। इसके बाद वही केस सरकार से भी क्लेम कर लिया जाता है—यानी फायदा दोनों तरफ से। जानकारों का कहना है कि यह सब विभागीय अधिकारियों के संरक्षण के बिना संभव नहीं है।

 

इतना ही नहीं, जानकार बताते हैं कि आयुष्मान पैनल लिस्ट में अपना नाम शामिल कराने के लिए कई निजी अस्पताल ऐसे शॉर्टकट अपनाते हैं कि कागजों में दिखाए गए डॉक्टर कुछ और होते हैं और वास्तविक रूप से अस्पताल में कार्य कर रहे डॉक्टर बिल्कुल अलग। इस तरह झूठे दस्तावेज़ों और गलत जानकारी के आधार पर अस्पताल पैनल में जुड़ जाते हैं और बाद में योजना का खुलकर दुरुपयोग करते हैं। यह सिस्टम में गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।

 

 

सूत्रों का कहना है कि कई अस्पतालों का तीन-तीन महीने तक निरीक्षण नहीं किया गया, जिससे अस्पताल मनमानी पर उतर आए हैं। अधिकारियों का रवैया इतना लापरवाह है कि फर्जी भर्ती, फर्जी बिलिंग और बिना इलाज के मरीजों के नाम पर क्लेम उठाने तक के मामले सामने आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक लाखों रुपये तक का वित्तीय भ्रष्टाचार होने की संभावना है।

 

 

अभी तक नोडल अधिकारी डॉ राकेश सिंह और शिकायत प्रकोष्ठ आमिर बेग की ओर से कोई कठोर कार्रवाई या पारदर्शी रिपोर्टिंग सामने नहीं आई है। इससे यह सवाल और तेज़ हो गया है कि क्या विभागीय अधिकारी खुद इस पूरे खेल का हिस्सा हैं? क्या इसलिए जांच बार-बार टाल दी जाती है?

 

 

कुल मिलाकर, बरेली में आयुष्मान भारत योजना गंभीर अव्यवस्थाओं और भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती दिखाई दे रही है। यदि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने समय रहते हाई-लेवल जांच नहीं करवाई, तो यह घोटाला आने वाले समय में बड़े पैमाने पर सामने आ सकता है। गरीबों के लिए बनी इस योजना का ऐसा दुरुपयोग सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

Advertisements
THE GREAT NEWS

THE GREAT NEWS

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *