आवारा और पालतू कुत्तों का आतंक चरम पर, काशीपुर में 100 से अधिक हमले कई बार दर्ज
अज़हर मलिक
काशीपुर में आवारा और पालतू दोनों तरह के कुत्तों का आतंक दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, और स्थिति अब इतने खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है कि लोग घर से बाहर निकलते समय भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। लगातार बढ़ रहे हमलों ने शहर के लोगों के मन में दहशत भर दी है। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ सबसे ज्यादा खतरे में हैं, क्योंकि कई घटनाएँ सुबह–शाम उस समय हुई हैं जब लोग जरूरी कामों के लिए बाहर निकलते हैं।
28 अक्टूबर से 29 नवंबर के बीच आए आंकड़े किसी डरावनी तस्वीर से कम नहीं लगते। शहर की गलियों से लेकर बाजार तक, अचानक झुंड बनाकर घूम रहे आवारा कुत्ते लोगों का पीछा करते हैं और बिना कारण हमला कर देते हैं। इसके साथ ही कई जगहों पर पालतू कुत्तों द्वारा भी राहगीरों पर हमला करने की शिकायतें बढ़ी हैं, जिससे लोगों में यह डर बैठ गया है कि अब हर कुत्ते से दूरी बनानी जरूरी हो गई है।
सरकारी अस्पताल में इलाज के दर्ज आंकड़ों के अनुसार 28 अक्टूबर को 131, 29 अक्टूबर को 60, 30 अक्टूबर को 33, 31 अक्टूबर को 56, 3 नवंबर को 128, 4 नवंबर को 71, 6 नवंबर को 66, 10 नवंबर को 124, 11 नवंबर को 57, 12 नवंबर को 33, 13 नवंबर को 56, 14 नवंबर को 51, 15 नवंबर को 55, 17 नवंबर को 84, 18 नवंबर को 74, 19 नवंबर को 62, 20 नवंबर को 46, 21 नवंबर को 51, 22 नवंबर को 64, 24 नवंबर को 06, 27 नवंबर को 56, 28 नवंबर को 56 और 29 नवंबर को 11 मामले दर्ज हुए। दिसंबर में भी हालात शांत नहीं हुए — 8 दिसंबर को 76, 9 दिसंबर को 69 और 10 दिसंबर को 48 मामले सामने आए, जो दिखाते हैं कि खतरा कम नहीं, बल्कि लगातार बढ़ रहा है।
कई दिन ऐसे रहे हैं जब कुत्तों के काटने की संख्या 100 के पार पहुंच गई। सबसे डराने वाली बात यह है कि ये हमले अचानक होते हैं — चाहे कोई स्कूल जा रहा हो, दुकान जा रहा हो या सुबह की सैर पर निकला हो। हमले में घायल हुए कई लोगों को गंभीर जख्म आए हैं, और कुछ बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि कुत्तों के झुंड कभी-कभी देर रात तक कॉलोनियों में घूमते रहते हैं, जिससे लोग घर से बाहर निकलने से भी घबराने लगे हैं।
लोगों ने नगर निगम पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। न तो आवारा कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण के लिए सही अभियान चल रहा है, न ही पालतू कुत्तों के लिए कोई सख्ती दिखाई गई है। कई पालतू कुत्तों के मालिक अपने कुत्तों को खुले में छोड़ देते हैं, जिससे वे बच्चों के पीछे भागकर हमला कर देते हैं। शिकायतें करने पर भी कोई ठोस कार्रवाई न होने से लोगों में रोष बढ़ता जा रहा है।
इसी बीच एक और चिंताजनक तथ्य सामने आया है। सितंबर में कुल 1014 कुत्तों को रेस्क्यू किया गया, जिनमें 549 मेल और 465 फीमेल थे, जबकि इस दौरान एक कुत्ते की मौत भी हुई। इतनी बड़ी संख्या यह दर्शाती है कि शहर में कुत्तों की आबादी कितनी तेजी से बढ़ रही है और यह स्थिति आने वाले दिनों में और भी भयावह हो सकती है।
अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा? यदि समय रहते नसबंदी, रेस्क्यू, नियंत्रण और पालतू कुत्तों पर नियमों का कड़ाई से पालन नहीं कराया गया, तो काशीपुर में हालात किसी बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। लोगों में बढ़ता डर साफ संकेत दे रहा है कि अब यह सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि शहर की सुरक्षा से जुड़ा गंभीर खतरा बन चुका है।