बिंदुखत्ता में भड़का जनाक्रोश: “राजस्व गांव नहीं तो चैन नहीं”, हजारों ग्रामीणों ने लालकुआं तहसील में भरी हुंकार
लालकुआं (मुकेश कुमार ): उत्तराखंड के सबसे बड़े आबादी वाले क्षेत्रों में शुमार बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की मांग अब एक बड़े जन-आंदोलन का रूप ले चुकी है। शुक्रवार को लालकुआं तहसील परिसर में हजारों की संख्या में उमड़े ग्रामीणों, महिलाओं और पूर्व सैनिकों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ‘आर-पार’ की लड़ाई का ऐलान कर दिया।
प्रमुख बिंदु: क्यों सुलग रहा है बिंदुखत्ता?
25 साल का धोखा: उत्तराखंड राज्य गठन के ढाई दशक बाद भी बिंदुखत्ता आज भी कागजों में ‘आरक्षित वन क्षेत्र’ है।
नेताओं की वादाखिलाफी: ग्रामीणों का आरोप है कि विधायक और सांसद केवल चुनाव के समय वोट के लिए ‘राजस्व गांव’ का झुनझुना थमाते हैं।
फाइलों का खेल: जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को भेजी गई रिपोर्ट पर डेढ़ साल बाद ‘आपत्ति’ लगाए जाने से जनता में भारी रोष है।
चाय पर चर्चा से हुंकार: वनाधिकार समिति के बैनर तले आयोजित इस धरने में राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के लोग एक साथ नजर आए।
“वोट हमारा-राज तुम्हारा… अब नहीं चलेगा”
तहसील परिसर में प्रदर्शनकारियों ने सरकार विरोधी जमकर नारेबाजी की। वक्ताओं ने दो टूक शब्दों में कहा कि कई मुख्यमंत्री बदले, कई सरकारें आईं, लेकिन बिंदुखत्ता की स्थिति जस की तस बनी हुई है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अब वे नेताओं की मीठी बातों में आने वाले नहीं हैं। यदि जल्द ही राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिला, तो यह आंदोलन नैनीताल से लेकर राजधानी देहरादून तक की सड़कों को जाम कर देगा।
“हमें राजस्व गांव से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। हमने 25 साल इंतजार किया है, अब हमारी आने वाली पीढ़ी के भविष्य का सवाल है। सरकार को हमारी चेतावनी है—या तो हक दो या फिर उग्र आंदोलन के लिए तैयार रहो।”
— प्रदर्शनकारी, वनाधिकार समिति
मातृशक्ति ने दिखाई ताकत
धरने में सबसे प्रभावी भूमिका महिलाओं की रही। भारी संख्या में पहुंची मातृशक्ति ने सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि घर-चूल्हा संभालने वाली महिलाएं अब अपने हक के लिए सड़कों पर उतर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि राजस्व गांव न होने के कारण उन्हें कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है।
धरने के समापन पर ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक चेतावनी थी। यदि प्रशासन और सरकार ने तय समय सीमा के भीतर बिंदुखत्ता को राजस्व गांव घोषित करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की, तो नैनीताल और देहरादून कूच किया जाएगा।