मुक्तेश्वर में नन्हे हाथों ने रचा इतिहास: 130 इको-ब्रिक्स बनाकर प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ छेड़ी जंग
मुकेश कुमार
नैनीताल के राजकीय इंटर कॉलेज मुक्तेश्वर में आज पर्यावरण संरक्षण की एक नई इबारत लिखी गई, जहाँ जिला गंगा समिति नैनीताल और शिप्रा कल्याण समिति भवाली के साझा प्रयास से ‘इको-ब्रिक निर्माण कार्यशाला’ का शानदार आयोजन हुआ।
जिलाधिकारी एवं अध्यक्ष जिला गंगा समिति के दिशा-निर्देशन और प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) हिमांशु बागरी के कुशल नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम ने छात्रों को प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का एक जादुई मंत्र दिया। कार्यशाला के दौरान स्कूल परिसर और आसपास से एकत्र किए गए भारी मात्रा में अनुपयोगी प्लास्टिक को बोतलों में भरकर कुल 130 इको-ब्रिक्स तैयार किए गए। इस दौरान जिला परियोजना अधिकारी पीयूष तिवारी के समन्वय में छात्रों को न केवल इको-ब्रिक बनाने की तकनीकी बारीकियां सिखाई गईं, बल्कि उन्हें यह भी समझाया गया कि कैसे एक छोटी सी प्लास्टिक की बोतल पर्यावरण के लिए ‘कंक्रीट की ईंट’ से भी ज्यादा मजबूत और उपयोगी साबित हो सकती है।
शिप्रा कल्याण समिति के अध्यक्ष जगदीश नेगी ने प्रशिक्षण सत्र के दौरान विद्यार्थियों और शिक्षकों को प्लास्टिक अपशिष्ट के रचनात्मक उपयोग के व्यावहारिक गुर सिखाए। उन्होंने बेहद सरल और प्रभावी तरीके से समझाया कि जो प्लास्टिक सदियों तक गलकर धरती को नुकसान पहुँचाता है, उसे इको-ब्रिक में बदलकर कैसे निर्माण कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है। छात्रों ने इस नवाचार में जबरदस्त उत्साह दिखाते हुए खुद अपने हाथों से बोतलों में प्लास्टिक भरकर उन्हें मजबूती दी। इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य नई पीढ़ी को यह संदेश देना था कि कचरा तब तक ही कचरा है जब तक हम उसके पुनर्चक्रण (Recycling) की शक्ति को नहीं पहचानते। डीएफओ हिमांशु बागरी के विजन के अनुरूप इस पहल को प्लास्टिक मुक्त उत्तराखंड की दिशा में एक बड़ा और प्रभावी कदम माना जा रहा है।
इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के भीतर पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता जगाना और प्लास्टिक जैसे घातक कचरे का वैज्ञानिक एवं सुरक्षित समाधान पेश करना रहा। जिला गंगा समिति ने स्पष्ट किया है कि ‘स्वच्छ गंगा-निर्मल गंगा’ और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के संकल्प को पूरा करने के लिए इस तरह की जन-जागरूकता गतिविधियां भविष्य में भी निरंतर जारी रहेंगी। स्कूल के शिक्षकों ने भी इस पहल की सराहना करते हुए इसे शिक्षा और समाज सेवा का एक अनूठा संगम बताया। मुक्तेश्वर की वादियों में शुरू हुई यह छोटी सी कोशिश आने वाले समय में प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ एक बड़े जन-आंदोलन की बुनियाद रखने का काम करेगी।
