उत्तराखंड ने 23 साल में किया प्रवेश, संघर्ष भरी रही राज्य बनाने की गाथा

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उत्तराखंड ने 23 साल में किया प्रवेश, संघर्ष भरी रही राज्य बनाने की गाथा

उत्तराखंड को आज भले ही 22 साल पूरे हो चुके हो। लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को बनाने के लिए प्रदेशवासियों को लंबे संघर्ष का दौर देखना पड़ा था। कई शहादतों और आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड उत्तरप्रदेश से अलग हुआ और एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ। इस पहाड़ी राज्य को बनाने में कई बड़े नेताओं और राज्य आंदोलनदारियों ने अपना अहम योगदान दिया जो इतिहास के पन्नों में आज भी कैद है। बता दें की उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग 1897 में उठी थी। ये वह समय था जब पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजा था और इस संदेश के द्वारा क्षेत्र को सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्कताओं के अनुरूप एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग की गई थी। वहीं 1923 में जब उत्तरप्रदेश संयुक्त प्रांत का हिस्सा हुआ करता था तो संयुक्त प्रांत के राज्यपाल को भी अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग को लेकर ज्ञापन भेजा गया था। जिसके बाद साल 1928 में कांग्रेस के मंच पर अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग रखी गई थी। इतना ही नहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अलग पहाड़ी राज्य बनाने का समर्थन किया था। लेकिन साल बीतते गए और अलग राज्य नहीं बन सका। जिसके बाद 1979 में अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ जिसके बाद पहाड़ी राज्य बनाने की मांग ने जोर पकड़ा और संघर्ष तेज हुआ। 1994 में अलग राज्य बनाने की गति ने रफ्तार पकड़ी और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कौशिक समिति का गठन किया। जिसके बाद 9 नवंबर को 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना। इस बीच अलग पहाड़ी राज्य तो बन गया लेकिन राज्य बनाने के लिए एक लंबा संघर्ष चला और कई आंदोलन भी हुए। अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए 42 आंदोलनदारियो को शहादत देनी पड़ी जिसमें बच्चों से लेकर महिलाओं और बुजुर्ग समेत अनगिनत लोगों ने हिस्सा लिया और बड़ी तादाद में लोग घायल भी हुए।

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