अल्हम्दु शरीफ का मतलब हिंदी में – जानिए इसका इस्लामिक महत्व और फज़ीलत
“अल्हम्दु शरीफ” एक ऐसा इस्लामिक शब्द है जिसे मुस्लिम दुनिया भर में नमाज़, दुआ और हर रोज़ाना ज़िक्र में पढ़ते हैं। यह शब्द कुरआन की सबसे पहली सूरत — सूरत-उल-फातिहा — की पहली आयत का हिस्सा है: “अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन”।
इस लेख में हम समझेंगे:
अल्हम्दु शरीफ का शाब्दिक अर्थ
इसका धार्मिक महत्व
कब और क्यों इसे पढ़ा जाता है
और इसकी फज़ीलत (फायदे) क्या हैं
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📖 अल्हम्दु शरीफ का शाब्दिक अर्थ
“अल्हम्दु” का अर्थ है: सारी तारीफें
“लिल्लाह” का अर्थ है: अल्लाह के लिए
यानि — “सारी तारीफें सिर्फ अल्लाह ही के लिए हैं”
यह वाक्य इस बात का इज़हार है कि हम जो कुछ भी हैं, जो कुछ भी हमें मिला है – वह सब अल्लाह की रहमत से है।
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🌙 धार्मिक महत्व
नमाज़ का हिस्सा: अल्हम्दु शरीफ को हर मुस्लिम नमाज़ की हर रकात में पढ़ता है।
कुरआन की शुरुआत: कुरआन की पहली सूरत अल-फातिहा की शुरुआत अल्हम्दु से होती है।
तौहीद का इज़हार: यह बयान करता है कि हम सिर्फ एक अल्लाह की तारीफ करते हैं।
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⏱️ कब पढ़ें?
हर नमाज़ में (फर्ज़, सुन्नत, नफ़्ल)
नई चीज़ मिलने पर (शुक्रिया अदा करने के लिए)
बीमारी से शिफा पाने के बाद
किसी भी नेमत पर जब दिल शुक्रगुज़ार हो
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🌟 फज़ीलत (फायदे)
1. शुक्र का इज़हार होता है
2. दिल को सुकून और जुबान को पाकी मिलती है
3. गुनाहों की माफी का ज़रिया बनता है
4. अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद आने वाले अल्फाज़ों में से है
हदीस में आता है –
“सबसे प्यारे अल्फाज़ अल्लाह को वो हैं, जो अल्हम्दु से शुरू होते हैं।”
(सही मुस्लिम)
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💬 अल्हम्दु शरीफ की तस्बीह कैसे पढ़ें?
33 बार अल्हम्दु लिल्लाह – नमाज़ के बाद
किसी खुशी पर – “अल्हम्दु लिल्लाह” कहें
अपनी हिम्मत और नेमतों को याद करें और शुक्र अदा करें
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निष्कर्ष:
“अल्हम्दु शरीफ” न सिर्फ एक ज़ुबानी इज़हार है, बल्कि एक सोच और जीवनशैली भी है। यह हर मुसलमान को याद दिलाता है कि जो भी हमारे पास है – वह एक रहमत है, और हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए।
📿 इस्लामी जानकारी, कुरआनी आयतों की तफसीर और दुआओं के मायनों
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