अला हज़रत: इल्म, ईमान और मोहब्बत-ए-रसूल ﷺ का अमर प्रतीक
भारत की सरज़मीन ने जब-जब इस्लाम की रहमत भरी खुशबू फैलाई, तो उसमें एक नाम हमेशा नूर बनकर चमका — इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी, जिन्हें पूरी दुनिया अला हज़रत के नाम से जानती है।
वो सिर्फ़ एक आलिम या मुफ़्ती नहीं थे, बल्कि एक ऐसा नूर थे, जिसने इल्म, इमान और मोहब्बत-ए-रसूल ﷺ की रोशनी से लाखों दिलों को रौशन कर दिया।
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अला हज़रत का जन्म 14 जून 1856 को बरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ।
बचपन से ही उनकी ज़हनी तेज़ी और इल्मी गहराई देखने लायक थी — सिर्फ़ 13 साल की उम्र में उन्होंने पहला फतवा लिखा और सही साबित हुआ।
उनकी ज़िंदगी का मक़सद था — उम्मत को सही राह पर चलाना और नबी-ए-पाक ﷺ की सुन्नत को फैलाना।
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📖 फतवा रज़विया – इल्म का समंदर
अला हज़रत ने अपनी ज़िंदगी इस्लामी तालीम के लिए वक्फ़ कर दी।
उन्होंने 1000 से ज़्यादा किताबें लिखीं, जिनमें सबसे मशहूर है “फतावा रज़विया” —
एक ऐसी किताब जो आज भी इस्लामी कानून, फिक्ह और अक़ीदे की सबसे भरोसेमंद दस्तावेज़ मानी जाती है।
उनके लिखे हर अल्फ़ाज़ में इल्म की गहराई और रूह की पवित्रता झलकती है।
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💖 मोहब्बत-ए-रसूल ﷺ का पैग़ाम
अला हज़रत की सबसे बड़ी पहचान थी — हज़रत मुहम्मद ﷺ से बेपनाह मोहब्बत।
उन्होंने अपनी शायरी और नातों के ज़रिए उस इश्क़ को ज़िंदा कर दिया, जो हर मोमिन के दिल में होना चाहिए।
उनकी मशहूर नात “मुस्तफ़ा जाने रहमत पे लाखों सलाम” आज भी दुनिया के हर कोने में गूंजती है।
यह नात सिर्फ़ एक कविता नहीं, बल्कि इश्क़ और अदब की तर्जुमान है।
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🕌 सूफ़ियत और अमन का पैग़ाम
अला हज़रत ने हमेशा अमन, मोहब्बत और इंसानियत का संदेश दिया।
उन्होंने कहा —
> “किसी भी गैर-मुस्लिम को दुख पहुँचाना इस्लाम की तालीम नहीं।”
उनकी सूफ़ियाना सोच ने हिंदुस्तान को एकता और भाईचारे का सबक दिया।
उनके दीवाने आज भी “मदनी चैनल”, “जमात-ए-रज़विया” और “दावते इस्लामी” जैसे प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए उनका पैग़ाम दुनिया तक पहुँचा रहे हैं।
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🌹 वफ़ात और उर्स-ए-रज़वी
अला हज़रत का विसाल 25 सफर 1340 हिजरी (28 अक्टूबर 1921) को हुआ।
उनका मज़ार शरीफ़ बरेली शरीफ़ में स्थित है, जो आज भी लाखों दीवानों की आस्था का मरकज़ है।
हर साल वहाँ उर्स-ए-रज़वी के मौके पर पूरी दुनिया से लोग इकट्ठा होते हैं —
जहां “या रसूल अल्लाह ﷺ” और “या अला हज़रत” की सदाएं गूंजती हैं।
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🌟 विरासत जो आज भी ज़िंदा है
आज, जब दुनिया में नफरत और तफ़रक़े की दीवारें खड़ी हैं,
अला हज़रत की तालीम हमें फिर से मोहब्बत, इंसाफ़ और दीन की राह दिखाती है।
उन्होंने कहा था —
> “जो नबी ﷺ से मोहब्बत करता है, वही अल्लाह का प्यारा होता है।”
यह बात आज भी लाखों दिलों में रौशन है।
अला हज़रत का नाम आज भी रोशनी, रहमत और रूहानी ताकत का पर्याय है।