Article 370 Debate 2025: क्या असली समाधान मिला या फिर नए सवाल खड़े हुए
अनुच्छेद 370, जो कभी जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति का संवैधानिक आधार हुआ करता था, अब 2025 में एक बार फिर सुर्खियों में है और सोशल मीडिया से लेकर संसद तक इसकी चर्चा तेज़ हो गई है, खासकर जब Twitter/X पर #Article370Returns, #FederalismDebate, #KashmirDemands और #JusticeForJammuAndKashmir जैसे हैशटैग्स के तहत लगभग 28,000 से अधिक ट्वीट्स सामने आए और यह स्पष्ट हो गया कि भले ही केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इस अनुच्छेद को निष्क्रिय कर दिया हो, लेकिन जनता के मन से इससे जुड़े सवाल पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। अनुच्छेद 370 पर हो रही ताजा बहस को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह सिर्फ एक संवैधानिक या कानूनी मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि यह देश के संघीय ढांचे, केंद्र-राज्य संबंधों और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व से जुड़ा एक बड़ा नैरेटिव बन चुका है, जिस पर युवा, बुद्धिजीवी, पत्रकार, राजनीतिक दल और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी अलग-अलग स्तरों पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
2025 में यह बहस इसलिए और प्रासंगिक हो गई है क्योंकि हाल ही में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है और कई राजनैतिक दलों ने मांग की है कि राज्य का दर्जा बहाल कर अनुच्छेद 370 को लेकर जो वादे और दावे किए गए थे, उन्हें ईमानदारी से लागू किया जाए। सोशल मीडिया पर कश्मीरी युवा खुलकर अपनी राय रख रहे हैं — कोई कहता है कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद बेरोजगारी और मानसिक तनाव बढ़ा है, तो कोई मानता है कि बाहरी निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार से घाटी में विकास की नई लहर आई है। ऐसे विरोधाभासी अनुभवों ने इस मुद्दे को और भी पेचीदा बना दिया है, जहां भावनाएं, आंकड़े और जमीनी सच्चाई एक-दूसरे से टकराते नजर आते हैं।
केंद्र सरकार की तरफ से दावा किया गया है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में आतंकवाद में कमी आई है, पर्यटकों की संख्या बढ़ी है, और डिजिटल सेवाएं बेहतर हुई हैं, लेकिन विपक्ष और कुछ नागरिक संगठनों का कहना है कि राज्य की जनता से बिना परामर्श के लिया गया फैसला लोकतंत्र की भावना के खिलाफ था। यही नहीं, कई राजनीति
क विश्लेष