देवभूमि या ड्रगभूमि? – Uttarakhand में बढ़ता नशा ट्रेंड

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देवभूमि या ड्रगभूमि? – Uttarakhand में बढ़ता नशा ट्रेंड

 

जब हम उत्तराखंड का नाम सुनते हैं, तो हमारे मन में एक तस्वीर बनती है – ऊँचे-ऊँचे हिमालय, पवित्र गंगा, चारधाम यात्रा, ऋषिकेश का शांत माहौल और हरिद्वार की आरती। यही वजह है कि इसे ‘देवभूमि’ कहा जाता है। लेकिन दुखद और चिंताजनक बात यह है कि आज इसी देवभूमि को कुछ लोग ‘ड्रगभूमि’ कहने लगे हैं। नशा, जो कभी यहाँ के शांत पहाड़ों से कोसों दूर था, अब हर गली, हर स्कूल-कॉलेज, और यहाँ तक कि गांवों तक में अपनी जड़ें फैला चुका है। क्या वाकई उत्तराखंड एक नई नशे की राजधानी बन रहा है? क्या हम अपने युवाओं को खो रहे हैं?

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उत्तराखंड में बढ़ते नशे के ट्रेंड को लेकर हाल के कुछ सालों में जो रिपोर्ट्स सामने आई हैं, वो चौंकाने वाली हैं। नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी और हल्द्वानी जैसे शहर अब सिर्फ पर्यटन स्थलों के तौर पर नहीं, बल्कि नशे के अड्डों के तौर पर भी चर्चा में आने लगे हैं। स्कूल और कॉलेज जाने वाले 14 से 25 साल की उम्र के युवाओं में गांजा, चरस, स्मैक और अब सिंथेटिक ड्रग्स का सेवन तेजी से बढ़ा है। कई NGO और पुलिस विभाग की रिपोर्टों के मुताबिक, केवल देहरादून में पिछले एक साल में ड्रग से जुड़े 700 से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं – और ये तो सिर्फ दर्ज मामले हैं, जो सामने नहीं आते उनकी संख्या कहीं ज़्यादा हो सकती है।

 

सबसे चिंताजनक बात यह है कि अब नशे का नेटवर्क सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि गाँवों और पहाड़ी इलाकों तक फैल गया है। बेरोजगारी, मानसिक तनाव, और सोशल मीडिया से प्रभावित ‘कूल बनने की चाह’ – ये सब मिलकर युवाओं को धीरे-धीरे नशे की तरफ खींच रहे हैं। स्कूलों में छोटे बच्चों द्वारा गांजा पीते पकड़े जाने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। उत्तराखंड पुलिस ने कई बार छापेमारी कर बड़े-बड़े ड्रग रैकेट्स का खुलासा किया है, जिनका कनेक्शन पंजाब, हिमाचल, दिल्ली और नेपाल तक फैला हुआ है। लेकिन क्या सिर्फ पुलिस की कार्रवाई ही इस बढ़ती लत को रोक सकती है?

 

उत्तराखंड में ड्रग ट्रेंड के बढ़ने के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण भी हैं। एक तरफ पर्यटक राज्यों से आने वाले लोग, खासकर पर्वतीय इलाकों में नशे की डिमांड बढ़ा रहे हैं, तो दूसरी तरफ स्थानीय लोग – जो बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और संसाधनों के अभाव से जूझ रहे हैं – इस धंधे में शामिल हो रहे हैं। कुछ इलाकों में तो यह एक अलिखित धंधा बन चुका है, जिससे गाँव के लोग चुपचाप कमाई कर रहे हैं। कई बार सरकार और स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे ही यह सब होता है – लेकिन कार्रवाई नहीं होती।

 

सोशल मीडिया पर आपको उत्तराखंड की वादियों में खुलेआम गांजा पीते हुए टूरिस्ट्स के वीडियो मिल जाएंगे, कुछ तो इसे “हिल्स का गोवा” भी कहने लगे हैं। लेकिन क्या देवभूमि को गोवा की तरह पार्टियों और नशे की जगह बनाना सही है? क्या हम वो पहचान भूल रहे हैं जिसके लिए उत्तराखंड दुनियाभर में जाना जाता था – योग, अध्यात्म और शांति की भूमि?

 

अब ज़रूरत है कि हम इस मुद्दे को सिर्फ “न्यूज़ हेडलाइन” बनाकर न छोड़ें, बल्कि इसके खिलाफ आवाज़ उठाएं। स्कूलों में नशा मुक्ति अभियान चलाना चाहिए, युवाओं के लिए काउंसलिंग और रोजगार के मौके बढ़ा

ने चाहिए, और सबसे

 

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