Election 2025 – Pre-Poll Surveys का सच और उनकी Reliability का विश्लेषण

Advertisements

Election 2025 – Pre-Poll Surveys का सच और उनकी Reliability का विश्लेषण

 

लोकसभा चुनाव 2025 के नज़दीक आते ही टीवी चैनल, न्यूज़ पोर्टल और पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म्स लगातार चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षण (Pre-Poll Opinion Polls) जारी कर रही हैं, जिनमें अनुमान लगाया जा रहा है कि किस दल को कितनी सीटें मिल सकती हैं और जनता का मूड किस ओर है। हालांकि, इन सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता और ट्रैक रिकॉर्ड पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। पिछले चुनावों के आंकड़े देखें तो कई बार ये पोल वास्तविक नतीजों से काफी दूर साबित हुए हैं — उदाहरण के लिए 2004 में ज्यादातर सर्वेक्षणों ने NDA की जीत दिखाई थी, लेकिन नतीजों में UPA सत्ता में आ गई। वहीं 2014 और 2019 में कई सर्वेक्षणों ने बीजेपी की बड़ी जीत का सटीक अंदाज़ा लगाया था। जनमत सर्वेक्षण की विश्वसनीयता कई कारकों पर निर्भर करती है — जैसे सैंपल साइज, क्षेत्रीय विविधता, सर्वे का समय, पूछे गए सवालों की भाषा और मतदाताओं का ईमानदार जवाब देने की प्रवृत्ति। डिजिटल युग में ऑनलाइन पोल्स और सोशल मीडिया ट्रेंड्स भी एक नई चुनौती बन गए हैं, क्योंकि इनमें शहरी और युवा मतदाताओं की हिस्सेदारी ज्यादा होती है, जिससे ग्रामीण और बुजुर्ग मतदाताओं का रुझान सही तरीके से सामने नहीं आ पाता। राजनीतिक दल भी अक्सर इन सर्वेक्षणों का इस्तेमाल चुनावी नैरेटिव सेट करने और अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए करते हैं, वहीं विरोधी दल इन्हें पक्षपाती या “प्रोपेगेंडा टूल” बताकर खारिज कर देते हैं। 2025 में बड़े सर्वे एजेंसियां AI और Data Analytics का इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि मतदाताओं के मूड का अधिक सटीक अनुमान लगाया जा सके, लेकिन फिर भी ज़मीनी हकीकत को पूरी तरह कैप्चर करना मुश्किल है, क्योंकि आखिरी समय में उम्मीदवार बदलना, स्थानीय मुद्दों का उठना, और वोटिंग से ठीक पहले का पब्लिक सेंटिमेंट नतीजों को बदल सकता है। इसलिए, प्री-पोल सर्वेक्षण एक संकेत जरूर देते हैं, लेकिन इन्हें अंतिम सच मानना चुनावी राजनीति में सबसे बड़ी भूल हो सकती है

Advertisements
Advertisements

Leave a Comment