चुनाव 2025 से पहले चुनाव कानूनों में हुए संशोधन – क्या बदल गया और क्यों मचा विवाद
भारत में 2025 के आम चुनाव से पहले चुनाव कानूनों (Election Laws) में हुए हालिया संशोधनों ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। चुनाव आयोग (Election Commission) और संसद द्वारा पारित इन बदलावों का उद्देश्य आधिकारिक तौर पर चुनावी पारदर्शिता (Electoral Transparency), मतदाता सुरक्षा और प्रक्रिया की गति बढ़ाना बताया जा रहा है, लेकिन कई संशोधनों ने गहरी बहस और विवाद भी खड़े कर दिए हैं।
सबसे बड़ा बदलाव वोटर आईडी-आधार लिंकिंग से जुड़ा है, जिसे चुनावी सूची से डुप्लीकेट नाम हटाने और फर्जी वोटिंग रोकने के लिए लागू किया गया। हालांकि इसे स्वैच्छिक (Voluntary) बताया गया है, फिर भी विपक्ष और नागरिक अधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि यह गरीब, प्रवासी और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को वोटिंग अधिकार से वंचित कर सकता है।
दूसरा बड़ा संशोधन ऑनलाइन नामांकन (E-Nomination) और डिजिटल प्रमाणीकरण को लेकर हुआ है, जिससे उम्मीदवार अब कई कागजी औपचारिकताओं से बच सकते हैं और प्रक्रिया तेज हो गई है। लेकिन साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर डेटा प्रोटेक्शन मजबूत नहीं हुआ, तो हैकिंग या डेटा लीकेज से चुनावी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
इसके अलावा, चुनावी खर्च सीमा (Election Spending Limit) में संशोधन करते हुए डिजिटल विज्ञापनों के लिए अलग बजट कैप तय किया गया है। इसका उद्देश्य बड़े दलों के विज्ञापन प्रभुत्व को सीमित करना है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि ‘अप्रत्यक्ष प्रचार’ (Indirect Promotion) और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग जैसे तरीकों को अभी भी ट्रैक करना मुश्किल है, जिससे असमान प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी।