जंगल में गूंजा विदेशी माँ का संन्यास, कर्नाटक की गुफा बनी Russia से आई महिला का घर

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जंगल में गूंजा विदेशी माँ का संन्यास, कर्नाटक की गुफा बनी Russia से आई महिला का घर

 

ये कोई सन्यासी की कथा नहीं है, ना ही किसी फिल्म का सीन — ये हकीकत है उस महिला की जिसने रूस की ठंडी गलियों को छोड़कर भारत के जंगलों की गोद में अपना बसेरा बना लिया। कर्नाटक की एक गुफा में, दो नन्हीं बेटियों के साथ ये विदेशी महिला महीनों से रह रही थी — न शोरगुल, न इंटरनेट, न AC — सिर्फ धरती, पहाड़, पेड़ और मन की शांति।

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नाम है नीना कुटिना। देश: Russia। लेकिन आत्मा अब शायद भारत में ही रम गई है।

जब लोकल फॉरेस्ट टीम ने उन्हें देखा, तो वो चौंक उठे। माँ और दो बेटियाँ एक गुफा में ध्यान मग्न। साधना जैसी ज़िंदगी, चेहरे पर संतोष की चमक। पूछताछ हुई तो महिला ने कहा –

“मैं जीवन को उसकी सबसे शुद्ध अवस्था में जी रही हूँ। यही मेरा सच है।”

 

उनके पास वैध वीज़ा था, यानी कोई कानून नहीं तोड़ा गया। लेकिन जंगल क्षेत्र में बिना अनुमति टिकना नियमों के विरुद्ध है। इसीलिए महिला और बच्चों को अब डिटेंशन सेंटर भेजा गया है और रूसी दूतावास को सूचना दी गई है।

 

मगर असली तूफान तो सोशल मीडिया पर उठा है।

Reddit, Instagram, Twitter – हर जगह इस “Forest Mom” की चर्चा हो रही है।

 

> “Technology छोड़कर जंगल में जिंदा रहना आज के समय में असंभव लगता है, लेकिन उन्होंने कर दिखाया।”

“She is living the life we all dream of.”

“Is she the real ‘Spiritual Nomad’?”

 

 

 

इन प्रतिक्रियाओं ने एक बहस छेड़ दी है —

क्या हम वाकई जरूरत से ज्यादा आधुनिक हो चुके हैं?

क्या बच्चों को मिट्टी, झरने और चिड़ियों से नहीं जोड़ना चाहिए?

क्या हर जीवन का एक ही फॉर्मेट ज़रूरी है?

कर्नाटक की गुफा में रह रही Russian महिला और बेटियाँ – जंगल को बनाया घर, अब पूरी दुनिया कर रही सलाम https://www.thegreatnews.in/bharat/russian-women-and-daughters-living-in-the-cave-of-karnataka-jungle-made-home-now-the-whole-world-is-saluting-the-whole-world/

अब लोग कह रहे हैं कि इस महिला की कहानी पर किताब लिखी जानी चाहिए, Netflix को डॉक्यूमेंट्री बनानी चाहिए, और हमें खुद से सवाल पूछना चाहिए —

“क्या मैं भी ऐसा कर सकता/सकती हूँ?”

 

ये कहानी अब सिर्फ एक न्यूज़ नहीं रही, ये बन गई है एक आईना — जो हमें खुद का असली चेहरा दिखाती है। प्रकृति में खो जाने का नाम पागलपन नहीं, शायद वही असल में ‘जिंदा’ होना है।

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