हज और उमरा: क्या फर्क है, कौन कर सकता है और कैसे किया जाता है?
मुसलमानों के लिए हज और उमरा दोनों ही बड़े अहम इबादतें हैं, लेकिन अक्सर लोग इनके बीच का फर्क ठीक से नहीं जानते। जहां हज इस्लाम का पांचवां स्तंभ है और हर समर्थ मुसलमान पर जिंदगी में एक बार फर्ज़ होता है, वहीं उमरा नफ्ल इबादत है जिसे सालभर किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि हज और उमरा में क्या फर्क है और इन्हें कैसे अदा किया जाता है।
हज और उमरा में क्या फर्क है?
हज कैसे किया जाता है?
1. एहराम पहनकर नियत करें।
2. काबा का तवाफ करें (सात चक्कर)।
3. सफ़ा और मरवा की सई करें।
4. अराफात के मैदान में वकूफ (9 ज़िलहिज्जा, यह हज का सबसे अहम रुकन है)।
5. मुज़दलिफा में रात बिताएं।
6. शैतान को कंकड़ मारना, कुर्बानी और हलीक/कसर करना।
7. विदाई तवाफ के बाद हज मुकम्मल होता है।
उमरा कैसे किया जाता है?
1. एहराम पहनकर नियत करें।
2. काबा का तवाफ (सात चक्कर)।
3. सफ़ा और मरवा की सई करें।
4. बाल मुंडवाना या कटवाना (हलीक/कसर) करके उमरा मुकम्मल हो जाता है।
हज और उमरा की फज़ीलत
हज-ए-मबरोर (कुबूल हज) का सिला सिर्फ जन्नत है।
उमरा करने से पिछले गुनाह माफ हो जाते हैं।
हज और उमरा करने वालों को अल्लाह का मेहमान कहा जाता है।
अगर आप सक्षम हैं और शारीरिक रूप से तैयार हैं, तो जिंदगी में एक बार हज करना फर्ज़ है। उमरा एक नफ्ल इबादत है, जिसे साल में कभी भी किया जा सकता है। हज के लिए खास दिनों और अरकान की पाबंदी होती है, जबकि उमरा छोटा और आसान होता है।