सरहदों पर परिस्थितियां बेहद विषम रहती है, लेकिन भारतीय सेना के शौर्य में कभी कमी नहीं दिखती यहाँ तक कि उन्नीस सौ बासठ की उस युद्ध में भी नहीं पराक्रम के तमाम किस्से हमारे सामने रहते हैं। लेकिन सियासत के जब सवाल उठते है तो उसके दायरे भी सियासी हो, ये जरूरी हो जाता है सैनिकों के शौर्य या फिर राष्ट्रहित के सामने वो एक प्रश्न बनकर नहीं खड़े होने चाहिए चीन और भारत दुनिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।उन्नीस सौ उनचास में चीन में साम्यवादी ताकतों का उदय होता है।इसके साथ ही जन्म होता है एक ऐसे देश का जिसकी सोच विस्तार बाधित थी दूसरी तरफ भारत अपने पहले प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व में आगे बढ़ाना जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे थे जिसने दो ध्रुवों में बंट चुकी दुनिया में अपनी एक स्थाई जगह बनाई थी लेकिन नाउ पंडित नेहरू के पहले रुतबे से परेशान इस बात का जिक्र पूर्व सीआईए अधिकारी ब्रूस रिडेल ने अपनी किताब जेएफके फॉरगॉटन प्राइस इस तिब्बत सीआइए और इन दो सिनोर ने किया है। रूस रिडेल लिखते हैं, चीन का शीर्ष नेतृत्व यानी मौत से तुम और प्रीमियम जाओ जियान जो बाहर लाल नेहरू से नाराज थे, उन्होंने नेहरू को अपमानित करने और उनकी बढ़ती लोकप्रियता और कद को कम करने के लिए उन्नीस सौ बासठ के युद्ध की शुरुआत इधर शी जिनपिंग से तुम से ज्यादा अलग नहीं जानकार मानते हैं कि मौजूदा परिदृश्य में चीन उन्नीस सौ बासठ जैसा कुछ दोहरा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक बार फिर वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत में देवस्थान, गुलाम और गलवान में चीन की घुसपैठ का का विरोध किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश को आंतरिक और बाहरी रूप से एक ताकतवर राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक मुद्दों पर एक स्वतंत्र राय रखी है पश्चिम एशिया के साथ मजबूत संबंध बनाए और दो हज़ार तेईस के लिए जी ट्वेंटी की अध्यक्षता हासिल की ये सब चीन को एक मजबूत भारत के प्रति बेहद असहज और आशंकित करता है इसलिए बीजिंग नहीं चाहेगा कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार दो हज़ार चौबीस में फिर से सत्ता में आए अगर मोदी दो हज़ार चौबीस के चुनाव में विजयी होते हैं तो उनकी राजनीतिक स्थिती बहुत मजबूत होगी और फिर अपने सामने एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय नेता मिल जाएगा, जिसके सामने जिनपिंग की अपनी छवि छोटी नजर आने लगी ऐसे में भारत में स्थायी सरकार को स्थिर करने के लिए जो जैसा हथियार ही जिनपिंग को बेहतर नज़र आता है।
India china clash: jinping माओ के रास्ते चलने को बेकरार

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