India Wants Global Code for Pilot Hiring: भारतीय पायलटों की इंटरनेशनल भर्ती पर रोक लगाने की उठी मां
भारत सरकार ने अब एक नई और काफी गंभीर अंतर्राष्ट्रीय बहस को जन्म दे दिया है, जब नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए (DGCA) की ओर से एक संयुक्त प्रस्ताव में यह मांग की गई है कि भारतीय पायलटों की इंटरनेशनल हायरिंग पर एक ग्लोबल कोड ऑफ कंडक्ट (Global Code of Conduct) तैयार किया जाए ताकि भारत जैसे विकासशील देशों के एयरलाइंस सेक्टर को पायलट क्राइसिस का सामना न करना पड़े, यह प्रस्ताव हाल ही में इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) को भेजा गया है, जिसमें साफ कहा गया है कि दुनिया के बड़े एविएशन मार्केट जैसे खाड़ी देशों, यूरोप, सिंगापुर और दक्षिण एशिया की कई एयरलाइंस भारतीय पायलटों को ऊंची तनख्वाह और आकर्षक शर्तों पर रिक्रूट कर रही हैं जिससे भारत की घरेलू एविएशन इंडस्ट्री को पायलटों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, ETS (Employment & Technical Surveillance) aviation trends के अनुसार 2025 की पहली तिमाही में ही भारत से करीब 300 से ज्यादा प्रशिक्षित कमर्शियल पायलटों ने विदेशी एयरलाइनों के साथ करार किया है, जिससे इंडिगो, एयर इंडिया, स्पाइसजेट जैसी कंपनियों को डोमेस्टिक रूट्स पर संचालन में बाधा आ रही है, DGCA ने यह भी बताया कि भारत हर साल लगभग 1,200–1,500 नए कमर्शियल पायलट्स तैयार कर रहा है लेकिन उनमें से 20% से ज्यादा शुरुआत से ही इंटरनेशनल ऑफर एक्सेप्ट कर लेते हैं क्योंकि विदेशी एयरलाइंस ₹25 लाख से ₹50 लाख तक के सालाना पैकेज, टैक्स फ्री इनकम, फैमिली ट्रांसफर और बेहतर वर्किंग कंडीशंस ऑफर कर रही हैं जबकि भारत में एविएशन सेक्टर अभी भी रनवे पर स्थिरता की कोशिश कर रहा है, इस मुद्दे को लेकर एविएशन मिनिस्टर ने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह ‘टैलेंट पॉचिंग’ की तरह है, जहां संसाधन और ट्रेनिंग पर खर्च करने वाला देश खोखला रह जाता है और समृद्ध देश इसका लाभ उठाते हैं, भारत अब इस स्थिति को बदलने के लिए ICAO के साथ मिलकर एक ऐसा कोड बनवाना चाहता है जिसमें या तो देशों को पायलट्स की सीधी भर्ती करने से पहले मूल देश की सहमति लेनी पड़े, या फिर एक ऐसा ट्रांज़िशनल मुआवज़ा मॉडल तैयार हो जिसमें पायलट्स के ट्रेनिंग खर्च का कुछ हिस्सा उस विदेशी एयरलाइन को देना पड़े जिसने पायलट को हायर किया है, साथ ही एक “cooling-off period” की भी मांग रखी गई है जिसके तहत पायलट्स को कम से कम 3–5 साल तक अपने देश में सर्विस देना अनिवार्य हो, DGCA का मानना है कि यदि ऐसा फ्रेमवर्क लागू नहीं किया गया तो अगले 5 साल में भारत को पायलटों की कमी के कारण अपनी एविएशन ग्रोथ को स्लो डाउन करना पड़ेगा जबकि दूसरी तरफ इंटरनेशनल एयरलाइंस भारत से ट्रेन किए गए सस्ते लेकिन क्वालिटी पायलट्स को उठा ले जाएंगी, जिससे न केवल भारत के एयरपोर्ट्स पर डोमेस्टिक ट्रैफिक प्रभावित होगा बल्कि फ्लाइट कैंसलेशन्स और डिले जैसी समस्याएं आम हो जाएंगी, ETS aviation workforce report ये भी बताती है कि 2024–25 में UAE, कतर, सिंगापुर और मलेशिया की एयरलाइंस भारत से सबसे ज़्यादा पायलट्स रिक्रूट कर रही हैं, खासकर उन पायलट्स को जो Airbus A320 या Boeing 737 जैसे जहाज उड़ाने में अनुभवी हैं, वहीं इंडियन एविएशन यूनियनों ने भी इस ट्रेंड पर आपत्ति जताई है कि सरकार ने लाखों रुपये सब्सिडी और इंफ्रास्ट्रक्चर देकर जो टैलेंट तैयार किया, वह सीधे इंटरनेशनल एयरलाइंस के हाथ में चला जा रहा है, इससे न केवल पब्लिक कैपेसिटी घटती है बल्कि लंबे टर्म में एविएशन एजुकेशन सेक्टर का इकोनॉमिक वायबिलिटी भी कमजोर होता है, दूसरी तरफ कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रस्ताव “प्रोफेशनल फ्रीडम” और “ओपन लेबर मार्केट” के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है, लेकिन भारत का जवाब साफ है—यह रोक नहीं बल्कि संतुलन और संरचना की मांग है ताकि किसी भी देश का एविएशन सिस्टम इस ट्रेंड के कारण कमजोर न हो, भारत का यह कदम सिर्फ अपने हित में नहीं बल्कि कई अफ्रीकी और एशियाई देशों के लिए भी मिसाल बन सकता है जिनके पास टैलेंट
तो है