मलेशिया में जुमे की नमाज न पढ़ने वालों के लिए जेल प्रस्तावि
मलेशिया में एक नया और विवादास्पद प्रस्ताव सामने आया है जिसके तहत यदि कोई मुस्लिम नागरिक जुमे की नमाज़ (Friday Prayers) अदा नहीं करता है तो उसे जेल की सज़ा दी जा सकती है। यह प्रस्ताव देश की इस्लामिक अथॉरिटी द्वारा राज्य विधानसभाओं के समक्ष रखा गया है और अब इस पर बहस शुरू हो चुकी है। मलेशिया में पहले से ही धार्मिक मामलों पर कड़े नियम लागू हैं, लेकिन नमाज़ न पढ़ने पर जेल की सज़ा देने का सुझाव अब तक का सबसे सख्त प्रावधान माना जा रहा है।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्रस्ताव में कहा गया है कि जुमे की नमाज़ इस्लाम में एक अहम फर्ज़ है और यदि कोई व्यक्ति इसे जानबूझकर छोड़ता है तो वह धार्मिक तौर पर गुनाहगार माना जाएगा। प्रस्तावित सज़ा के अनुसार दोषी पाए जाने पर जुर्माना और कारावास दोनों का प्रावधान रखा गया है। हालांकि, इस प्रस्ताव ने देश में धर्म और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Freedom of Religion vs Personal Liberty) को लेकर बहस छेड़ दी है।
कुछ इस्लामिक संगठनों और रूढ़िवादी नेताओं ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे लोग धार्मिक कर्तव्यों को गंभीरता से लेंगे और समाज में अनुशासन बढ़ेगा। उनका तर्क है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कई युवा नमाज़ से दूरी बना रहे हैं, जिसे रोकने के लिए कड़े कानून ज़रूरी हैं।
लेकिन दूसरी ओर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और उदारवादी समूहों ने इसे व्यक्तिगत आज़ादी पर हमला बताया है। उनका कहना है कि किसी भी धार्मिक कर्तव्य को कानून के ज़रिए मजबूर करना न केवल असंवैधानिक है बल्कि समाज में तनाव भी पैदा कर सकता है। उनका यह भी कहना है कि इस्लाम खुद इख़लाक़ (स्वेच्छा और नीयत) पर ज़ोर देता है, इसलिए किसी को जेल भेजना धार्मिक मूल्यों के खिलाफ होगा।
कानून विशेषज्ञों ने भी आशंका जताई है
कि यदि यह