2025 यूरोपीय हीट वेव्स: UK सहित कई क्षेत्र रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और सूखे की चपेट में

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2025 यूरोपीय हीट वेव्स: UK सहित कई क्षेत्र रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और सूखे की चपेट में

 

वर्ष 2025 में यूरोप के कई देशों को अभूतपूर्व हीट वेव्स और लंबे सूखे की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसने पूरे महाद्वीप को जलवायु संकट की गंभीरता का अहसास करा दिया है। इस बार की यूरोपीय हीट वेव्स ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, खासकर यूनाइटेड किंगडम (UK), फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और इटली जैसे देशों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया है, जो अब तक का सबसे खतरनाक स्तर माना जा रहा है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के कारण और भी गंभीर हो रही है। हीट वेव्स ने न केवल आम लोगों की जिंदगी प्रभावित की है बल्कि कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और पर्यटन सेक्टर पर भी सीधा असर डाला है। कई जगहों पर सूखे के कारण पीने के पानी और सिंचाई की भारी किल्लत देखी जा रही है, जिससे किसानों को अपनी फसलें छोड़नी पड़ी हैं और खाद्य संकट का खतरा बढ़ गया है।

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UK में सरकार को कई शहरों में हीट इमरजेंसी घोषित करनी पड़ी और अस्पतालों में हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। स्पेन और इटली जैसे देशों में जंगलों में भीषण आग लगी, जिससे हजारों हेक्टेयर वन जलकर खाक हो गए और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। वहीं, जर्मनी और फ्रांस में नदियों का जलस्तर ऐतिहासिक रूप से नीचे चला गया, जिससे बिजली उत्पादन और शिपिंग उद्योग ठप पड़ने के कगार पर है।

 

यूरोपीय संघ (EU) ने इस संकट से निपटने के लिए आपात बैठक की और ग्रीन एनर्जी, वाटर मैनेजमेंट और क्लाइमेट-रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से लागू करने पर जोर दिया। जलवायु विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर तुरंत रोकथाम नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में यूरोप को और भी भयानक हीट वेव्स और सूखे का सामना करना पड़ेगा। इस बीच, पर्यावरण संगठनों ने सरकारों से अपील की है कि वे नागरिकों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ लॉन्ग-टर्म क्लाइमेट एक्शन प्लान को प्राथमिकता दें।

 

2025 की यूरोपीय हीट वेव्स ने यह साफ कर दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग अब भविष्य की नहीं बल्कि वर्तमान की समस्या बन चुकी है। UK और अन्य यूरोपीय देशों के लिए यह एक चेतावनी है कि यदि पर्यावरणीय सुधार और सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के असर और भी विनाशकारी हो सकते हैं।

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