National Sports Day 2025: मेजर ध्यानचंद की जयंती पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय खेल दिवस, जानिए भारत के खेल इतिहास की खास बातें

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National Sports Day 2025: मेजर ध्यानचंद की जयंती पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय खेल दिवस, जानिए भारत के खेल इतिहास की खास बातें

 

भारत में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) मनाया जाता है। यह दिन हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की जयंती को समर्पित है। ध्यानचंद ने अपने जीवन में भारतीय हॉकी को उस ऊंचाई पर पहुंचाया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। यही वजह है कि उनकी जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाना न सिर्फ उनके योगदान का सम्मान है बल्कि यह पूरे देश को खेलों के महत्व की याद भी दिलाता है।

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राष्ट्रीय खेल दिवस का मुख्य उद्देश्य है युवाओं और समाज को यह प्रेरणा देना कि खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि अनुशासन, मेहनत और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक हैं। इस दिन देशभर में विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं, जागरूकता अभियान और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनका मकसद है “खेलो इंडिया – बढ़ो इंडिया” के विजन को मजबूत करना।

 

 

 

मेजर ध्यानचंद: हॉकी का जादूगर

 

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनका नाम पहले ध्यान सिंह था लेकिन खेल के मैदान पर उनकी अद्भुत स्किल देखकर लोग उन्हें ध्यानचंद कहने लगे। वे भारतीय सेना में भर्ती हुए और यहीं से हॉकी के प्रति उनका जुनून शुरू हुआ।

 

ध्यानचंद ने भारत के लिए तीन ओलंपिक (1928, 1932 और 1936) में हिस्सा लिया और तीनों बार गोल्ड मेडल दिलाया। 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत ने पहली बार हॉकी में स्वर्ण पदक जीता और यह सिलसिला लगातार जारी रहा। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में तो ध्यानचंद का खेल देखकर जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनके प्रशंसक बन गए थे और उन्हें जर्मनी में नौकरी का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने गर्व से भारत का साथ चुना।

 

ध्यानचंद के खेल को देखकर लोग कहते थे कि उनके हॉकी स्टिक से जैसे गेंद “चुंबक” की तरह चिपक जाती है। यही वजह है कि उन्हें “हॉकी का जादूगर” कहा गया।

 

 

 

राष्ट्रीय खेल दिवस की शुरुआत

 

भारत सरकार ने 2012 में आधिकारिक तौर पर 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया। इस दिन को मनाने का मकसद था ध्यानचंद के योगदान को याद करना और देशभर में खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ाना।

 

हर साल इस मौके पर राष्ट्रपति भवन में विशेष समारोह आयोजित होता है, जहां देश के खिलाड़ियों को सर्वोच्च खेल पुरस्कार दिए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं:

 

मेज़र ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार (पहले राजीव गांधी खेल रत्न)

 

अर्जुन अवार्ड

 

द्रोणाचार्य अवार्ड (कोचों को दिया जाने वाला)

 

ध्यानचंद अवार्ड (लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए)

 

 

ये पुरस्कार उन खिलाड़ियों और कोचों को दिए जाते हैं जिन्होंने भारत का नाम खेल जगत में ऊंचा किया है।

 

 

 

खेलों का महत्व और भारत का इतिहास

 

भारत का खेलों से रिश्ता बहुत पुराना है। गांवों में खेले जाने वाले कबड्डी, कुश्ती, खो-खो और गिल्ली-डंडा जैसे खेल हमारी सांस्कृतिक धरोहर रहे हैं। आजादी के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासकर हॉकी और क्रिकेट में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं।

 

1928 से 1956 तक भारत की हॉकी टीम ने लगातार 6 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते। वहीं 1983 में कपिल देव की कप्तानी में भारत ने क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता, जिसने देश में क्रिकेट को धर्म बना दिया।

 

21वीं सदी में भारत ने बैडमिंटन, बॉक्सिंग, कुश्ती, शूटिंग और एथलेटिक्स जैसे खेलों में भी विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। पी.वी. सिंधु, सायना नेहवाल, मेरी कॉम, नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू जैसे खिलाड़ियों ने ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया।

 

 

 

आज का खेल परिदृश्य और युवाओं के लिए प्रेरणा

 

राष्ट्रीय खेल दिवस का संदेश है कि खेल सिर्फ मेडल जीतने का जरिया नहीं बल्कि स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और टीम स्पिरिट का आधार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “खेलो इंडिया योजना” और फिट इंडिया मूवमेंट इसी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं।

 

आज जब भारत का लक्ष्य है कि पेरिस 2028 ओलंपिक में रिकॉर्ड मेडल हासिल किए जाएं, तब राष्ट्रीय खेल दिवस युवाओं को और भी प्रेरित करता है। भारत का सपना है कि न सिर्फ क्रिकेट बल्कि हर खेल में विश्व शक्ति बनकर उभरे।

 

 

 

नतीजा

 

राष्ट्रीय खेल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि मेजर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों की मेहनत और लगन से ही भारत ने खेल जगत में पहचान बनाई। आज जरूरत है कि सरकार, समाज और युवा मिलकर खेल संस्कृति को और मजबूत करें। हर बच्चा खेलों को अपनाए ताकि भारत का भविष्य खेलों में और उज्ज्वल हो सके।

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