शहीद का वादा निभाया” — एक गांव ने शहीद की याद में तय किया नया बदलाव

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शहीद का वादा निभाया” — एक गांव ने शहीद की याद में तय किया नया बदलाव

 

भारत की धरती पर जब भी कोई जवान शहीद होता है तो उसका सपना, उसका अधूरा वादा और उसकी इच्छाएँ पूरे समाज की जिम्मेदारी बन जाती हैं, Independence Day 2025 के अवसर पर उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर बसे एक छोटे से गांव ने ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसे लोग “शहीद का वादा निभाया” कहकर सराह रहे हैं, दरअसल इस गांव के वीर सपूत कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए थे और उन्होंने अपने परिवार व ग्रामीणों से वादा किया था कि गांव को शिक्षा और स्वच्छता के मामले में इतना मजबूत बनाया जाएगा कि आने वाली पीढ़ियाँ किसी भी मुश्किल का सामना कर सकें, उनकी शहादत के बाद सालों तक यह सपना अधूरा रहा लेकिन अब गांववालों ने मिलकर यह ठान लिया है कि शहीद के वादे को निभाना ही असली देशभक्ति है,

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गांव में पंचायत और युवाओं की मदद से “शहीद शिक्षा मिशन” की शुरुआत की गई है जिसके तहत हर बच्चे को स्कूल भेजने का अभियान चल रहा है, खास बात यह है कि जिन परिवारों के पास पढ़ाई के लिए संसाधन नहीं हैं उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्च पूरा गांव मिलकर उठा रहा है, इसके अलावा “स्वच्छ ग्राम पहल” के तहत घर-घर शौचालय, कचरा निस्तारण और हरियाली बढ़ाने के लिए पौधारोपण अभियान चलाया जा रहा है, ग्रामीणों ने यह तय किया है कि गांव के हर घर के बाहर तिरंगा लहराएगा और शहीद की प्रतिमा के पास हर हफ्ते सामूहिक सफाई अभियान होगा,

 

सोशल मीडिया पर इस गांव की पहल के वीडियो वायरल हो रहे हैं और लोग इसे “Real Tribute to Martyr” कह रहे हैं, खासकर #ShaheedKaVada और #DeshBhaktiGaon जैसे हैशटैग्स ट्रेंड कर रहे हैं, Independence Day 2025 से पहले इस पहल ने देशभर में लोगों के दिलों को छू लिया है क्योंकि यह केवल श्रद्धांजलि नहीं बल्कि एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत है,

 

गांव के बच्चों ने कहा कि अब वे पढ़ाई करके न सिर्फ अपने गांव का नाम रोशन करेंगे बल्कि शहीद चाचा के सपनों को भी पूरा करेंगे, महिलाओं ने भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई है, उन्होंने मिलकर “शहीद महिला मंडल” बनाया है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर अभियान चला रहा है, वहीं युवाओं ने खेलकूद और स्काउट जैसी गतिविधियों को गांव में शुरू किया ताकि बच्चों में अनुशासन और देशभक्ति की भावना बढ़े,

 

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हर गांव इस तरह अपने शहीदों के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाए तो भारत न केवल विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ेगा बल्कि यह भी साबित होगा कि शहादत केवल स्मारक बनाने या माल्यार्पण तक सीमित नहीं है, बल्कि असली श्रद्धांजलि तभी है जब हम उनके अधूरे सपनों को पूरा करें,

 

इस गांव की पहल से प्रेरणा लेकर आसपास के कई गांवों ने भी ऐसे ही संकल्प लेना शुरू कर दिया है, कोई अपने शहीद के नाम से लाइब्रेरी बना रहा है तो कोई अस्पताल की शुरुआत कर रहा है, यही कारण है कि यह अभियान धीरे-धीरे एक आंदोलन का रूप ले

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