गिलगित-बाल्टिस्तान में व्यापारियों का विद्रोह – पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भड़का गुस्सा

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गिलगित-बाल्टिस्तान में व्यापारियों का विद्रोह – पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भड़का गुस्सा

 

गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) से बड़ी खबर सामने आ रही है, जहां व्यापारियों का विद्रोह (Traders’ Uprising) खुलकर सामने आ गया है और हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। पाकिस्तान सरकार द्वारा लगातार लगाए जा रहे नए टैक्स, महंगाई, बिजली-पानी की बढ़ती दरें और आर्थिक संकट ने वहां के व्यापारियों और आम नागरिकों का गुस्सा भड़का दिया है। स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कई बाजारों को बंद कर दिया और बड़े पैमाने पर हड़ताल की गई। इस दौरान “गो बैक पाकिस्तान” और “हमें हक चाहिए” जैसे नारे भी लगाए गए, जो इस क्षेत्र की जनता की गहरी नाराजगी को दर्शाते हैं।

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गिलगित-बाल्टिस्तान लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक उपेक्षा का शिकार रहा है। पाकिस्तान की सरकार यहां के संसाधनों का इस्तेमाल तो करती है, लेकिन स्थानीय लोगों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पातीं। व्यापारियों का आरोप है कि सरकार ने इस क्षेत्र पर टैक्स लगाकर उन्हें आर्थिक तौर पर पूरी तरह से जकड़ दिया है। पहले से ही बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे लोगों पर जब नए टैक्स और बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी का बोझ डाला गया, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा।

 

इस विरोध आंदोलन ने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में भूचाल ला दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि इमरान खान की गिरफ्तारी और राजनीतिक अस्थिरता के बीच अब गिलगित-बाल्टिस्तान का यह विद्रोह सरकार की मुश्किलें और बढ़ा सकता है। वहीं कई विश्लेषक यह भी मानते हैं कि यह सिर्फ आर्थिक विद्रोह नहीं बल्कि स्वायत्तता (Autonomy) और अधिकारों की मांग से जुड़ा बड़ा आंदोलन बन सकता है।

 

सोशल मीडिया पर भी गिलगित-बाल्टिस्तान का यह आंदोलन चर्चा में है। #GilgitBaltistanProtest और #TradersUprising जैसे हैशटैग पाकिस्तान और भारत दोनों जगह ट्रेंड कर रहे हैं। कई लोग इसे पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जनता के अविश्वास का सबूत बता रहे हैं।

 

कुल मिलाकर, गिलगित-बाल्टिस्तान में भड़का यह व्यापारिक विद्रोह पाकिस्तान के लिए नया सिरदर्द बन गया है। अगर सरकार ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है और पाकिस्तान के पहले से कमजोर होते राजनीतिक और आर्थिक ढांचे को और हिला

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