युवाओं में संयम और ब्रह्मचर्य पर संत आसारामजी बापू का जोर, ‘यौवन सुरक्षा’ अभियान चर्चा में
देश में युवाओं के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान को लेकर चल रही बहस के बीच, संत श्री आसारामजी बापू के विचार एक बार फिर चर्चा में हैं। बापू का मानना है कि पश्चिमी मानसिकता से प्रभावित कुछ मनोचिकित्सक और सेक्सोलॉजिस्ट युवाओं को संयम और नैतिकता से दूर कर रहे हैं, जबकि भारत की प्राचीन संस्कृति में ब्रह्मचर्य को जीवन के सर्वोच्च आदर्शों में से एक माना गया है।
बापू ने अपने प्रवचनों में ‘यौवन सुरक्षा’ और #Significance_Of_Celibacy जैसे अभियानों के जरिए युवाओं को Spiritual Discipline (आध्यात्मिक अनुशासन) अपनाने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि संयमित जीवन न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह चरित्र निर्माण और राष्ट्र की प्रगति में भी अहम भूमिका निभाता है।
आध्यात्मिक विशेषज्ञों का कहना है कि आधुनिक जीवनशैली में बढ़ते तनाव, असंयम और अनियंत्रित इच्छाओं के कारण युवा कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे में ‘ब्रह्मचर्य’ और ‘संयम’ जैसे आदर्श उन्हें स्थिरता और आत्मबल प्रदान कर सकते हैं।
हालांकि, इस विचार पर समाज में अलग-अलग मत हैं। जहां एक पक्ष इसे भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इसे आधुनिक स्वतंत्रता के विपरीत समझता है।