Supreme Court on Army Commission: महिलाओं और पुरुषों को एक समान मानदंड पर नहीं तौला जा सकता, अलग कैटेगरी में रखे जाएं
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय सेना में महिला और पुरुष अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने के लिए एक ही मानदंड का उपयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों वर्गों की सेवा शर्तें, परिस्थितियाँ और अवसर अलग-अलग होते हैं, कोर्ट का यह फैसला उस याचिका पर आया है जिसमें कुछ महिला अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित रखा गया जबकि पुरुष अधिकारियों को उसी प्रदर्शन के आधार पर मौका दिया गया, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि पुरुष और महिला आर्मी ऑफिसर्स को सर्विस कंडीशंस, पोस्टिंग्स और फिजिकल एक्सपोज़र के लिहाज़ से समान मानकर फैसला लेना व्यावहारिक नहीं होगा, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि महिला अधिकारियों की पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियाँ, ड्यूटी असाइनमेंट, ट्रेनिंग स्ट्रक्चर और यूनिट एक्सपोज़र आम तौर पर पुरुषों से अलग होता है, इसलिए आर्मी में स्थायी कमीशन जैसे निर्णयों के लिए “एक साइज फिट्स ऑल” अप्रोच उपयुक्त नहीं है, ETS (Equal Treatment Statistics) के डिफेंस डाटा के अनुसार 2024–25 में महिला अधिकारियों की संख्या 1,733 थी, जिनमें से केवल 30% को ही स्थायी कमीशन दिया गया जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 84% के आसपास रहा, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्हें मूल्यांकन के समय “वेटेज” कम मिला और कुछ ऑफिसर्स को तो बिना स्पष्ट कारण के रिजेक्ट कर दिया गया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए लेकिन समान मानदंड थोपना उनके साथ अन्याय भी हो सकता है, कोर्ट ने यह भी कहा कि सेना की संरचना और कार्यप्रणाली को देखते हुए ऐसा ढांचा बनाया जाना चाहिए जो “समानता के अधिकार” (Article 14) के साथ-साथ “वास्तविकता की ज़मीन” पर भी खरा उतरे, यानी समानता का अर्थ यह नहीं कि सभी को एक ही मापदंड पर तौला जाए, बल्कि यह देखा जाए कि हर वर्ग की ज़मीनी परिस्थितियाँ क्या हैं, और फिर उसी अनुसार निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाए, कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि महिला अधिकारियों को प्रमोशन, ट्रेनिंग, और करियर एडवांसमेंट में किसी प्रकार का भेदभाव न हो और जहां संभव हो वहां नीति में सुधार लाकर महिलाओं को अवसर दिए जाएं, इस फैसले के बाद रक्षा मंत्रालय को अब नई नीति पर विचार करना होगा जो महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन के लिए अलग लेकिन न्यायसंगत मापदंड तय करे, ETS gender parity review में यह भी सामने आया कि कई महिला अधिकारी अत्यधिक योग्य होते हुए भी केवल यूनिट पोस्टिंग या पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण रिजेक्ट कर दी जाती हैं, जबकि पुरुष अधिकारियों के लिए ऐसे कारणों को वैसा महत्व नहीं दिया जाता, कोर्ट के इस फैसले से एक ओर जहां पुरुष अधिकारियो